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बाघों को पैसा कमाने की मशीन बनाया-जाजू

भीलवाड़ा 04 अगस्त (वार्ता) वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के पूर्व विशेषाधिकारी एवं वन्यजीव संरक्षण संस्था पीपुल फॉर एनीमल्स (पीएफए) की राजस्थान इकाई के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने प्रसिद्ध टाईगर प्रोजेक्ट रणथंभौर को 39वीं रैंक मिलने पर चिंता जताते हुए कहा है कि अनदेखी एवं धन कमाने की लालसा ने बाघों को पैसा कमाने की मशीन बना दिया।
श्री जाजू ने अपने बयान में आज कहा कि देश के 50 टाईगर प्रोजेक्टों में रणथम्भौर टागर प्रोजेक्ट की 39वीं एवं सरिस्का टाईगर प्रोजेक्ट की 42वीं रैंक आई है जो रणथंभौर एवं सरिस्का बाघ अभयारण्य प्रंबधन की लापरवाही को दर्शाती है।
उन्होंने कहा कि पर्यटकों की अत्यधिक आवाजाही से बाघों में मनोवैज्ञानिक तनाव उत्पन्न होकर उनके स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि रणथंभौर एवं सरिस्का राष्ट्रीय पार्कों की प्रबंधन के नियमों में सख्ती नहीं होने से होटलों की असीमित संख्या है वहीं होटल वाले राष्ट्रीय पार्कों में खाद्य पदार्थ फैंककर बाघों को आकर्षित करते हैं जिससे बाघ उनकी होटल की ओर आये और वहां ठहरे पर्यटकों को लुभा सके।
उन्होंने कहा कि होटलों की अवैध रूप से वायरलैस लगी सफारियां भी रणथंभौर एवं सरिस्का बाघ परियोजना में प्रवेश करती है। श्री जाजू ने कहा कि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते वन्यजीव सलाहकार बोर्ड में विशेषज्ञों की बजाय चाटुकारिता करने वालों को रखा जाता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पार्क की नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए कुछ होटलें बिना अनापत्ति प्रमाण-पत्र एवं बिना रूपांतरण के भी बन चुकी है।
उन्होंने कहा कि बाघों का तनाव कम कर प्राकृतिक वातावरण देने के लिए पर्यटकों की आवाजाही कम करने, पर्यटकों के सफारी का समय निश्चित करने, होटल के वाहनों के अवैध प्रवेश पर रोक लगाने, वन रक्षकों की भर्ती कर बाघों की सुरक्षा के लिए पेट्रोलिंग बढ़ाने, बाघ प्रोजेक्टों में आवासीय बस्तियों को आज की कीमत के अनुसार मुआवजा दिलवाकर उन्हें अन्यत्र बसाने एवं होटल माफियाओं का प्रबंधन पर दबाव समाप्त करने, अभयारण्य की दीवार की उंचाई बढ़ाने, जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की जरुरत है ताकि बाघों की संख्या बढ़ सके।
उन्होंने कहा कि सरिस्का में वर्ष 2004 में 22 बाघ-बाघिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे, जो लापरवाही के चलते एवं अन्तर्राष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों की सक्रियता के चलते शून्य हो गये थे। बाद में फिर में वर्ष 2008 में रणथम्भौर से बाघ लाकर सरिस्का में छोड़े गये और इनका कुनबा फिर बढ़ने लगा। लेकिन बाघों के प्रति अनदेखी एवं जिम्मेदार लोगों की लापरवाही की वजह से सरिस्का में बाघों के शिकार करने क घटना फिर सामने आई।
उल्लेखनीय है कि वन मंत्री सुखराम विश्नोई ने हाल में विधानसभा में बताया कि सरिस्का में वर्ष 2010 के बाद छह बाघों की मौत हो चुकी है उनमें तीन बाघों की मौत प्राकृतिक रुप से जबकि दो बाघों का शिकार हुआ और एक बाघ की मौत कंटीले तारों में फंसने से हुई। सरिस्का में अभी ग्यारह बाघ बाघिन एवं दो शावक बताये जा रहे हैं जबकि तीन शावक लापता है।
जोरा
वार्ता
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