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विभाजन का दर्द झेलने वाली बुजुर्ग महिलाओं का सम्मान

श्रीगंगानगर, 14 अगस्त (वार्ता) करीब 72 वर्ष पहले भारत-पाकिस्तान के विभाजन की त्रासदी के दौरान अपना घर-बार और परिवारों को छोड़-बिछड़कर जान बचाते, कष्ट भोगते भारतीय क्षेत्र में जैसे-तैसे पहुंची बुजुर्ग महिलाओं का राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में पदमपुर में भारतीय सिंधु सभा, पूज्य सिंधी पंचायत, भानुशाली पंचायत और युवा संगठन के संयुक्त तत्वावधान में आज स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में सम्मान किया गया।
झूलेलाल मन्दिर में आयोजित कार्यक्रम मेें सिंधी समाज के इन संगठनों के अध्यक्ष लालचंद बदलानी, तुलसी हंजवाणी और सम्भाग प्रभारी घनश्याम हरवाणी ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को जब देश एक तरफ आजादी का जश्न मना रहा था, दूसरी तरफ भारत के विभाजन की सबसे अधिक पीड़ा सिंधी समाज के लोग भुगत रहे थे। अपने वतन से समाज के लोगों को बिछुड़ना पड़ा। बावजूद इसके सिंधी समाज के लोग हिन्दुस्तान के कौने-कौने मेें खुशबू की तरह हर समुदाय में फैल गये। विभाजन की पीड़ा को यह समाज अपने दिल में दबाये हुए है। कश्मीरियों को आधा कश्मीर मिला, पंजाबियों को आधा पंजाब मिला। बंगालियों को आधा बंगाला मिला, लेकिन सिंधी समाज के साथ पूरे का पूरा सिंध प्रांत विभाजन में पाकिस्तान के हिस्से में रह गया।
उन्होंने कहा- फिर भी हमें सिंधी होने पर गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने अपनी भाषा, सभ्यता, धर्म और संस्कृति को बचाने की खातिर सिंध प्रांत में अपने बड़े-बड़े घर, खेत-खलियान और व्यापार छोड़कर खाली हाथ हिन्दुस्तान आये। मेहनत के बलबूते पर खुद को और अपने समाज को स्थापित करके फिर से नई पहचान बनाई। श्री हरवाणी ने कहा कि आज का दिन सिंध स्मृति दिवस के रूप में मनाया गया, जिसमें विभाजन के समय पाकिस्तान छोड़कर आये परिवारों की लगभग दो दर्जन बुजुर्ग महिलाओं को सम्मानित किया गया।
सेठी सुनील
वार्ता
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