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गांधी के सिद्धांतों का राजस्थान में पड़ा गहरा प्रभाव

जयपुर 29 सितंबर (वार्ता) राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांतों का राजस्थान में भी गहरा प्रभाव पड़ा और उनकी यात्रा से रुढ़िवादी परम्पराएं टूटी तथा भेदभाव एवं छुआछूत को भुलाकर समाज में जागरुकता एवं एकजुटता आई।
अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के 150वें जयंती वर्ष के अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से उनके सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारत भ्रमण के दौरान अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने के लिए राजस्थान को भी चुना और इसके लिए उन्होंने राजस्थान की तीन बार वर्ष 1921, 1922 और 1934 में यात्राएं की।
गांधी तीनों बार राजस्थान के अजमेर आए, क्योंकि अजमेर-मेरवाड़ा सीधे अंग्रेज शासन के अधीन होने के कारण यहां उनका यहां सामाजिक बदलाव कर लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरुक करने का उद्देश्य था। इससे लोगों में बदलाव भी देखने को मिला और वे गांधी के सिद्धांतों पर चलकर एकजुट भी हुए।
वह वर्ष 1934 में हरिजन यात्रा के दौरान चार जुलाई को अजमेर आये। इसके दो दिन बाद गांधी ब्यावर गये और वहां उन्हें एक चौबीस साल के युवा चंद्रशेखर एवं उसके समर्थकों के काले झंडों का सामना करना पड़ा। महात्मा गांधी काशी से संस्कृत में शिक्षा प्राप्त चंद्रशेखर से बात भी की। इस दौरान चंद्रशेखर ने गांधी को शास्त्रार्थ करने की चुनौती दे डाली। इस पर गांधी ने बड़े विनम्र भाव से हंसते हुए कहा कि वह बिना शास्त्रार्थ के ही हार गया और तुम इसकी घोषणा कर दो। इससे चंद्रशेखर बहुत प्रभावित हुए और आगे चलकर पुरी के शंकराचार्य बने और स्वामी निरंजनदेव तीर्थ कहलाए।
महात्मा गांधी के सिद्धांतों से स्थानकवासी जैन साधु भी काफी प्रभावित हुए और ब्यावर के मिशन ग्राउंड पर उनकी सभा में इन साधुओं ने उनको मानपत्र दिया और हरिजन कल्याण कोष के लिए धन संग्रह किया। बताया जाता है कि कई साधु रचनात्मक कार्यों से जुड़ गये। सभा में गांधीजी को जनता और हरिजनों ने मानपत्र भेंट किया और हरिजन कोष के लिए एकत्र धन दिया। इस दौरान गांधी हरिजन बस्तियों में गए।
इसी तरह गांधी की अजमेर यात्रा का विरोध कर रहे बाबा लालनाथ पर भी उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। महात्मा गांधी के अजमेर आने की खबर सुनकर लालनाथ उनकी सभा में उनके ही विरोध में बोलने की इच्छा का संदेश गांधी के पास भिजवाया। जिसे गांधी ने सहज स्वीकार करते हुए लालनाथ को इसकी अनुमति दे दी। लेकिन लालनाथ गांधी की सभा में उनसे पहले ही पहुंच गए और लोगों ने उनका विरोध किया और उनका सिर फोड़ दिया।
इस घटना से महात्मा गाधी बड़े दुखी हुई और उन्होंने लालनाथ को मंच पर बैठाकर सिर पर पट्टी बांधी। लोगों से कहा कि लालनाथ को काला झंडा लेकर सभा में आने का पूरा हक है। काली झंडियां सुधारकों का क्या बिगाड़ सकती हैं। मेरा विरोध करने पर लालनाथजी पर हुए हमले से हरिजन कार्य को क्षति पहुंची है। मैं तो राजनीतिक वातावरण में भी हिंसा बर्दाश्त नहीं कर सकता, फिर यह तो धर्म क्षेत्र है।’
इसके बाद गांधी ने लालनाथ को सभा में अपनी बात कहने का अनुरोध किया। लालनाथ के बोलते ही लोगों ने उनके विरोध में नारे लगाने शुरु कर दिये। गांधी ने लोगों से कहा ‘आप जो यह शेम-शेम की आवाजें लगा रहें हैं, यह धिक्कार लालनाथजी के लिए नहीं बल्कि आपके लिए है। जो मनुष्य अपने विरोधियों की बात नहीं सुनना चाहता वह कदापि धर्माचरण का पात्र नहीं हो सकता। हरिजन सेवा एक धार्मिक प्रवृत्ति है। इसमें असहिष्णुता एवं हिंसा के लिए स्थान नहीं है।’’ इस पर लोग शांत हो गए और लालनाथ की पूरी बात को सुना।
गांधी ने लालनाथ के साथ हुई घटना पर प्रायश्चित करने के लिए वर्धा में सात दिन का उपवास किया। चौदह अगस्त को उपवास समाप्ति पर गांधी ने हरिजन सेवक में लिखकर हरिजन आंदोलन से जुड़े लोगों से अपने विरोधियों के साथ शुद्ध व्यवहार करने का संदेश भी दिया।
गांधी का राजस्थान के सीकर के पास काशी का बास में एक मारवाड़ी परिवार में जन्में एवं जाने माने उद्योगपति जमनालाल बजाज से भी गहरा लगाव था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री बजाज गांधी के प्रखर अनुयायी थे और गांधी उन्हें अपने पुत्र की तरह मानते थे। जमनालाल बजाज महात्मा गांधी के जीवन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने पत्नी जानकी देवी और बच्चों को गांधी के आश्रम में रहने के लिए ले आये।
जोरा
वार्ता
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