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निकाय चुनाव में कांग्रेस को अपने ही फैसल को बदलना पड़ा

राजस्थान में कांग्रेस सरकार को शहरी निकायों में महापौर, सभापति और अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष कराने के अपने ही फैसले को बदलना पड़ा है।
पिछले शासन में कांग्रेस सरकार ने महापौर, सभापति और अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष कराये थे, लेकिन इस बार इस फैसले को बदल दिया गया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव प्रक्रिया तय करने के लिये स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के नेतृत्व में समिति का गठन किया था जिसने आज अप्रत्यक्ष चुनाव कराने का निर्णय लिया। बैठक के बाद श्री धारीवाल ने प्रत्यक्ष चुनाव नहीं कराने के पीछे जातिवाद और हिंसा भड़कने का तर्क देते हुए अपने फैसले को जायज बताया। सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी ने सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि सुशासन के बल पर कांग्रेस निकाय चुनाव में जीत हासिल करेगी।
प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने इस फैसले को हार का डर बताया है। भाजपा ने कहा है कि राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ी हुई है लिहाजा कांग्रेस का यह आरोप कि प्रत्यक्ष चुनाव से हिंसा भड़क सकती है, काेई मायने नहीं रखता। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डा़ सतीश पूनिया ने इस फैसले पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस ने चुनाव में किरकिरी से बचने के लिये यह निर्णय किया है।
कांग्रेस सरकार के इस फैसले से कई ऐसे नेता नाराज हैं जो अपने को प्रत्यक्ष चुनाव के जरिए जीत की आस लगाये बैठे थे। जबकि ऐसे नेता भी हैं जो पार्षद बनने के बाद बहुमत आने पर महापौर, सभापति और अध्यक्ष के दावेदार हैं तथा उन्हें सरकार पर भरोसा है।
अप्रत्यक्ष चुनाव में बहुमत नहीं आने पर जोड़तोड़ कर महापौर अध्यक्ष या सभापति बनाने का अवसर भी सत्तारुढ़ पार्टी को मिल जाता है यही कारण है कि विपक्षी दल सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।
जयपुर में पिछली बार कांग्रेस शासन में प्रत्यक्ष चुनाव के जरिए महिला महापौर ज्योति खण्डेलवाल चुनी गई थीं तथा भाजपा का गढ़ माने जाने वाले जयपुर शहर में सेंध लगाई थी। इस बार भी यह माना जा रहा था कि प्रत्यक्ष चुनाव हुए तो भाजपा को मजबूत प्रत्याशी उतारने में परेशानी आयेगी जबकि अप्रत्यक्ष चुनाव में उसे भाजपा के पक्ष में चल रही देशव्यापी लहर का लाभ मिलने की उम्मीद है।
पारीक सुनील
वार्ता
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