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साहित्य आर्श ग्रंथों से निकलकर संस्कृति में समाहित होता है- डा. शर्मा

बारां, 04 जनवरी (वार्ता) साहित्य की सार्थकता उसकी उपादेयता, सार्वभौमिकता पर प्रासंगिकता एवं सार्वभौमिकता पर निर्भर तो है ही साथ ही आधारभूत मापदंडों को लेकर भी है, साहित्य आर्श ग्रंथों से निकलकर संस्कृति में समाहित हो जाता है।
यह विचार साहित्यकार डा. प्रो. उमेशचंद्र शर्मा ने राजस्थान के बारां में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के सौजन्य से युवा मंडल संस्थान बारां द्वारा आयोजित अखिल भारतीय साहित्यकार समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन सत्र में वयक्त करते हुए कहा कि प्रश्न यह नहीं है कि कैसे लिखा जाए, प्रश्न यह है कि क्या लिखा जाए।
समारोह में डा. नरेंद्रनाथ चतुर्वेदी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि हम साहित्य लिखें और उसे महत्व नहीं दें तो सार्थकता समाप्त हो जाती है। विशिष्ट अतिथि बारां जिला प्रेस क्लब के जिलाध्यक्ष दिलीप शाह मधुप ने कहा कि साहित्यकार का दायित्व है कि समाज को अपनी ओर से दिशा दे और हम समाज के लोग उसका पालन करें। साहित्यकार के उपर यह गंभीर जिम्मेदारी है कि वह समाज में आदर्शों की स्थापना करें। आदर्शों का सूत्रपात ही साहित्य की सार्थकता है।
इस अवसर पर माता बिस्मिल्लाह देवी सर्वधर्म सद्भावना सम्मान 5100 रूपए उत्तरप्रदेश के प्रो. उमेशचंद्र शर्मा की कृति ‘वैष्णव दर्शन में काम अध्यात्मक गुरूमाता’ के लिये, श्रीमती कमरूनिशा देवी सर्वधर्म समन्वय सम्मान 1000 रूपए कोम के चांद शेरी की पुस्तक ‘जर्द पत्ते हरे हो गये’ पर, श्रीमति कमला देवी स्मृति सम्मान खोजना होगा अमृत कलश 2000 रूपए राजकुमार जैन राजन को दिया गया।
शाह सुनील
वार्ता
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