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वीरेन्द्र सिंह के लिए राजीनतिक विरासत बचाने की चुनौती

जयपुर 22 दिसम्बर (वार्ता) राजस्थान कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सीकर जिले में सबसे कद्दावर नेता चैधरी नारायण सिंह के पुत्र दातारामगढ से विधायक वीरेन्द्र सिंह के लिए राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है।
पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव एवं उससे पहले निकाय चुनावों मे कांग्रेस पार्टी की करारी हार कम से कम यही संकेत दे रही है। दातारामगढ़ से विधायक वीरेन्द्रसिंह के समक्ष यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि आखिर वह अपने पिता की साख को बचाकर रख पाएंगे या नहीं ? अलबत्ता इस सवाल का पहला जवाब उनके समर्थकों से मिला है कि उन्हें विरासत में हासिल राजनीति को बचाए रखने के लिए समय रहते अपनी कार्यशैली में और परिवर्तन लाना होगा, अन्यथा उनके लिए खुद और पिता की साख को बनाए रख पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन बेहद मुश्किल जरूर हो जाएगा।
गौरतलब है कि बेबाक अंदाज में राजनीति करने वाले चैधरी नारायण सिंह साल 1971 में पहली बार दांतारामगढ़ से विधायक बने थे. तब से लेकर आज तक उन्होंने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कई बार बुलंदियों को छुआ तो कई बार उन्हें निराशा भी हाथ लगी है, इसके बावजूद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा है और वे सदा अपनी दबंग.जुझारू कार्यशैली के दम पर सीकर जिले की सियासत के केन्द्र में ही रहे हैं।
दरअसल यह चर्चा यहां इसलिए की जा रही है कि वीरेन्द्र सिंह को अपने पिताश्री के अंदाज को समय रहते आत्मसात करना होगा ताकि वे चैधरी साहब से मिली विरासत को न केवल बचा पाएं बल्कि एक दबंग जाट नेता के रूप में स्वयं को स्थापित भी कर सकें।
क्षेत्र के खाटूश्यामजी कस्बे में नवगठित नगर पालिका के पिछले महीने हुए चुनाव के परिणाम कांग्रेस और विधायक वीरेन्द्र सिंह के लिए काफी निराशाजनक थे। उसके बाद पंचायत चुनाव के नतीजे फिर उनके लिए काफी घोर निराशा उत्पन्न करने वाले साबित हुए है। परिणाम के रूप में कांग्रेस न केवल दांतारामगढ़ पंचायत समिति प्रधान का चुनाव हार गई है बल्कि नव गठित पलसाना पंचायत समिति में भी उसे चारों खाने चित आना पड़ा है. इतना ही नहीं इसी क्षेत्र से जिला परिषद के वार्ड नम्बर 12 की सीट, जो काफी हॉट मानी जा रही थी, जहां से भारतीय जनता पार्टी भाजपा नेता प्रेमसिंह बाजोर की पुत्रवधू गायत्री कंवर और पूर्व जिला प्रमुख दामोदर प्रसाद शर्मा की पुत्रवधु कांग्रेस प्रत्याशी रिंकू शर्मा भाग्य आजमा रही थी। यह भाग्य मात्र जिला परिषद के सदस्य का नहीं बल्कि जिला प्रमुख का था, लेकिन उसका परिणाम मात्र तीन सौ वोटों के अंतर में आया है, जो कांग्रेस की कमजोर चुनाव रणनीति को दर्शाता है।
गौरतलब यह भी है कि खुद विधायक वीरेन्द्र सिंह मात्र नौ सौ मतों के अंतर से जीते थे, उन्हें भाजपा के साथ साथ माकपा से भी दो चार होना पड़ा और अब भी दोनों ही दलों से जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस अभी प्रदेश में सत्ता में है, ऐसे में क्षेत्र की जनता काम चाहती है. विधायक वीरेन्द्र सिंह का व्यवहार आम लोगों के लिए बेहतर है लेकिन पैंतरेबाजी अभी उन्हें और सीखनी होगी क्योंकि क्षेत्र की जनता ने नारायण सिंह के रूप में एक धांसू राजनेता को लंबे समय तक देखा है। जिन्होंने अपनी वाकपटुता और अलग अंदाज के बल पर मजबूत पारी खेली है। यह दिगर बात है कि वीरेन्द्र सिंह मशहूर जाट नेता चैधरी नारायण सिंह के सुपुत्र है. लेकिन उनके जैसा बनना और राजनीतिक विरासत को बचाए रख पाना एक बड़ी चुनौती है।
जोशी रामसिंह
वार्ता
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