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प्रवासी पक्षी कुरजां वापस अपने घर लौटने लगे

जैसलमेर 26 मार्च (वार्ता) ठंडे मुल्कों से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर राजस्थान के सीमांत जैसलमेर एवं जोधपुर जिले कुछ स्थानों पर आने वाले प्रवासी पक्षी कुरजां अब वापस अपने घर लौटने लगे हैं।
अपनी ध्वनि, उड़ान और अठखेलियों से पिछले सात महीने से पश्चिमी राजस्थान के तालाबों को आबाद रखने वाली कुरजां अब गर्मियों की दस्तक के साथ अपने प्रवास स्थलों की तरफ उड़ने लगी हैं। इन दिनों लौटती हुई कुरजां के झुंड आकाश में उड़ते देखे जा सकते हैं। कुरजां (डेमोसाइल क्रेन) सारस प्रजाति का प्रवासी पक्षी है। मानसून की बरसातों के बाद सितम्बर माह में ठंडे मुल्कों से उड़कर हजारों किलोमीटर का सफर तय करके पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर एवं रामदेवरा तथा जोधपुर जिले के फलौदी एवं खींचन गांव के साथ गुजरात के कच्छ के तालाबों पर पहुंचने वाले यह पक्षी सर्दियों का मौसम एक तालाब से दूसरे तालाब पर पड़ाव डालकर बिताते हैं।
पक्षी विशेषज्ञ एवं पर्यावरण प्रेमी डॉ दिविज सैनी ने बताया कि गर्मियों में यह पक्षी मंगोलिया, मध्य एशिया, दक्षिणी रूस एवं पूर्वी यूरोप के ठंडे घास मैदानों में अपने चूजों को पालने में समय व्यतीत करते हैं। अगस्त तक चूजों के बड़े हो जाने के बाद और सर्दियों की शुरुआत से पहले यह पक्षी वापस भारत की तरफ उड़ान भर लेते हैं।
जैसलमेर के बर्डवॉचर पार्थ जगाणी ने बताया विभिन्न देशों से होकर भारत में सर्दियाँ बिताने आने वाले इन मेहमान पक्षियों की सुरक्षा पर केन्द्र सरकार द्वारा अनेक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण समझौते किए गये हैं।
राजस्थान की लोक संस्कृति में कुरजां गहराई से जुड़े हुए हैं और एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। मार्च महीने के आधे बीत जाने पर अब यह पक्षी अपने जोशीले कलरव के साथ मध्य यूरेशिया की तरफ जाने लगे हैं। उन्होंने बताया कि
अंग्रेजी वर्णमाला के वी एवं डब्ल्यू वर्णों जैसी दिखने वाली इनकी उड़ान से महाभारत युद्ध में सेना की क्रौंच व्यूह संरचना का नाम पड़ा था। भारत से उड़ान भरने के बाद पन्द्रह दिनों में पांच से सात हजार किलोमीटर की दूरी यह आसानी से तय कर लेते हैं। इस दौरान ये पक्षी हिंदुकुश, पामीर, कराकोरम और हिमालय की ऊँची चोटियों के साथ विभिन्न देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को भी यह पार करते हैं।
श्री जगानी ने बताया कि सामान्यतः यह धरातल से 350 मीटर से 1300 मीटर की ऊँचाई तक उड़ते हैं, लेकिन ऊँचे पर्वतों को पार करते समय यह समुद्री सतह से सात हजार मीटर की ऊँचाई तक उड़ान पर्वतीय ढ़लानों के सहारे भर लेते हैं।
जैसलमेर जिले के वन्यजीव प्रेमियों राधेश्याम पेमानी एवं सुमेर सिंह भाटी ने बताया कि जिले में देगराय, खेतोलाई, फतेहगढ़, छोड़, भीखसर, डेलासर, बडोडा गाँव, नेतसी क्षेत्रों में सर्दियाँ बिताने के बाद अब कुरजां अगले सितम्बर में वापस आने के वादे के साथ विदाई लेने लगी है और आका में वापस लौटती हुई नजर आ रही है।
भाटिया जोरा
वार्ता
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