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राजस्थान में इस बार हर्बल गुलाल से महक रही है होली

जयपुर 28 मार्च (वार्ता) राजस्थान में इस बार रंगो का पर्व होली आदिवासी क्षेत्रों के साथ राजधानी जयपुर सहित अन्य कई जगहों पर भी विभिन्न रंगों के साथ पलाश एवं अन्य फूलों से बने हर्बल गुलाल से भी महक रहा है।
राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में होली के अवसर पर लोग पलाश, गुलाब, अमलतास आदि के फूल से बनने वाले प्राकृतिक रंग से होली खेलते आये हैं और होली से पहले ही ये फूल तोड़कर इन्हें सूखाकर इसका रंग बना लेते हैं और होली पर इससे जमकर होली खेलते हैं। हालांकि बदलते माहौल में पिछले कई सालों में इसकी जगह केमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल ज्यादा होने से हर्बल गुलाल की मांग कम होने से इसका प्रचलन कम हो गया लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते प्रदूषण एवं केमिकल रंगों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए फिर से हर्बल रंग एवं गुलाल का प्रचलन बढ़ने लगा हैं और सरकार तथा अन्य गैर सरकार संगठन आदि सभी इको फ्रेंडली होली पर जोर देने से इस बार राजधानी जयपुर सहित कई स्थानों पर हर्बल गुलाल की मांग भी बढ़ी हैं।
जयपुर में भी इस बार होली पर रविवार एवं इससे पहले विभिन्न कार्यालयों एवं संस्थानों में काम कर रहे लोग होली मिलन कार्यक्रमों में हर्बल गुलाल का खूब उपयोग किया और विभिन्न रंगों के साथ पलाश के फूलों से बने हर्बल गुलाल की महक भी फैली। उल्लेखनीय है कि हाल में राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद् (राजीविका) और ग्रामीण विकास विभाग की ओर से जयपुर के रामलीला मैदान में आयोजित जयपुर सरस राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में लोगों ने विभिन्न उत्पादों के साथ हर्बल गुलाल की जमकर खरीददारी की थी। हर्बल गुलाल की बहुतयात में बिक्री के कारण इस बार गुलाबी नगरी की होली हर्बल गुलाल से महकी वहीं ग्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार हर्बल गुलाल पर्यावरण और स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखा।
प्रतापगढ़ जिले के सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण से लेकर बांसवाड़ा रोड के जंगलों तक पलाश के पेड़ों पर लगे फूल प्राकृतिक सुंदरता बिखेरते नजर आ रहे हैं वहीं आदिवासी लोग इनके फूलों से रंग बनाकर होली खेल रहे हैं। वन विभाग भी इन हर्बल रंगों को बढ़ावा दे रहा है। वन विभाग की टीम और आदिवासी अंचल की समितियां हर्बल गुलाल तैयार कर बाजार में उपलब्ध कराती है।
उदयपुर में वन विभाग की पहल पर हर्बल गुलाल तैयार की गई। विभाग ने आयसजृन गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से होली पर स्वयं सहायता समूह एवं वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समितियों के माध्यम से हर्बल गुलाल तैयार कर पिछले दस वर्षों से लोगों के विक्रय के लिए उपलब्ध करा रहा है। इससे ग्रामीणों विशेषकर जनजाति महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हो रहा है साथ ही उनकी आय में भी बढ़ोतरी हो रही है।
स्थानीय रूप से उपलब्ध पलाश, ढाक (खाखरा), गुलाब, कनेर, बोगन बेलिया, अमलतास, टेकोमा आदि के फूलों को सुखाकर तैयार रंगों एवं आरारोट के मिश्रण से पारम्परिक तरीके से रंग बनाया जाता है। इस प्राकृतिक रंग से होली खेलने पर व्यक्ति को कोई नुकसान पहुंचता। बाजार में बढ़ती मांग के मद्देनजर इस वर्ष लगभग छह क्विंटल हर्बल गुलाल बिक्री का लक्ष्य रखा गया था। उदयपुर संभागीय मुख्य वन संरक्षक आर के सिंह ने गत 16 मार्च को उदयपुर के चेतक सर्कल पर हर्बल गुलाल बिक्री केन्द्र का शुभारंभ भी किया था। इसके बाद लोगों ने खूब हर्बल गुलाल खरीदा, जिससे होली में इसकी महक फैली।
श्रमिक आदिवासी संगठन से जुड़े आदिवासी समाज के लोग शाहपुर और घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के आदिवासी गांवों में पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं और इस बार भी इस रंग से होली खेली। संगठन से जुड़े लोग जंगल और पानी को बचाने के लिए अपने लोगों को प्राकृतिक रंगों से होली खेलने के लिए प्रेरित करने के साथ जंगल को बचाने के लिए पेड़ों की कटाई नहीं करने के प्रति भी जागरुक कर रहे हैं। आदिवासी समाज के लोग पेड़ों को बचाने का संदेश देने के लिए लंबे समय से अभियान चला रहे हैं। बारिश के पहले हरियाली यात्रा निकालकर गांव-गांव पौधे लगाने का संदेश देते हैं और होली के पहले बारिश में लगाए पौधों की पूजा-अर्चना कर रक्षा सूत्र बांधते हैं।
जोरा
वार्ता
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