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आम की विकसित नई किस्म से बारहों महीने आता है फल

जयपुर 05 अप्रैल (वार्ता) राजस्थान में कोटा के एक किसान ने आम की एक ऐसी नई किस्म विकसित की है जिसमें नियमित तौर पर पूरे वर्ष सदाबहार नाम का आम पैदा होता है। आम की यह किस्म आम के फल में होने वाली ज्यादातर प्रमुख बीमारियों और आमतौर पर होने वाली गड़बड़ियों से मुक्त है।
कोटा निवासी किसान श्रीकृष्ण सुमन (55 वर्ष) द्वारा तैयार की गयी आम का स्वाद में ज्यादा मीठा, लंगड़ा आम जैसा होता है और नाटा पेड़ होने के चलते किचन गार्डन में लगाने के लिए उपयुक्त है। इसका पेड़ काफी घना होता है और इसे कुछ साल तक गमले में भी लगाया जा सकता है। पोषक तत्वों से भरपूर आम स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
वर्ष 2000 में उन्होंने अपने बागान में आम के एक ऐसे पेड़ को देखा जिसके बढ़ने की दर बहुत तेज थी, जिसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की थी। उन्होंने देखा कि इस पेड़ में पूरे साल बौर आते हैं। यह देखने के बाद उन्होंने आम के पेड़ की पांच कलमें तैयार की। इस किस्म को विकसित करने में उन्हें करीब 15 साल का समय लगा और इस बीच उन्होंने कलम से बने इस पौधों का संरक्षण और विकास किया। उन्होंने पाया कि कलम लगाने के बाद पेड़ में दूसरे ही साल से फल लगने शुरु हो गए।
आधिकारिक प्रवकता ने बताया कि इस नई किस्म को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की संस्थान नेशनल इन्वोशन फाउंडेशन (एनआईएफ)ने भी मान्यता दी। एनआईएफ ने आईसीएआर- राष्ट्रीय बागबानी संस्थान इंडियन इंस्ट्रीट्यूट ऑफ हार्टिकल्चरल रिसर्च (आईआईएचआर), बैंगलौर को भी इस किस्म का स्थल पर जाकर मूल्यांकन करने की सुविधा दी। इसके अलावा राजस्थान के जयपुर के जोबनर स्थित एसकेएन एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी ने इसकी फील्ड टेस्टिंग भी की। अब इस किस्म का, पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा आईसीएआर- नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनवीपीजीआर) नई दिल्ली के तहत पंजीकरण कराने की प्रक्रिया चल रही है।
श्रीकृष्ण सुमन को 2017 से 2020 तक देश भर से और अन्य देशों से भी सदाबहार आम के पौधों के 8,000 हजार से ज्यादा ऑर्डर मिल चुके हैं। वह 2018 से 2020 तक आंध्रप्रदेश, गोवा, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और चंडीगढ़ को 6,000 से ज्यादा पौधों की आपूर्ति कर चुके हैं। 500 से ज्यादा पौधे राजस्थान और मध्यप्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान संस्थानों में वे खुद लगा चुके हैं। इसके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों को भी 4,00 से ज्याद कलमें भेज चुके हैं।
रामसिंह
वार्ता
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