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अलवर में कोरोना के बढ़ते मामले प्रशासन के लिये चुनौती बने

अलवर, 20 अप्रैल (वार्ता) राजस्थान में अलवर जिले में कोरोना के बढ़ते मामलों ने जिला प्रशासन के समक्ष चुनौती पेश की है।
रोजाना कोरोना के बढ़ रहे मामले स्वास्थ्य सेवाओं को चुनौती दे रहे हैं। इस कोरोना काल में जहां ऑक्सीजन सिलेंडरों की मारामारी है, वहीं कुछ शिकायतें ऐसी भी सामने आई हैं जहां लोग आक्सीजन सिलेंडरों को अपने घरों में रख रहे हैं।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉक्टर ओपी मीणा ने आज बताया कि अलवर जिले में फिलहाल 3600 एक्टिव मामले है। इनमें से 350 मरीज डॉक्टरों की विशेष सलाह पर चल रहे हैं। साथ ही 150 मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट बेड पर हैं। इसके अलावा 70 मरीज आईसीयू में भर्ती हैं। 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। इसके अलावा 3300 मरीज होम आइसोलेशन में हैं जो चिकित्सा विभाग की पूरी निगरानी है।
उन्होंने बताया कि जिले में कोरोना के बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के आइसीयू भरे हुए हैं। जिन्हें बारी बारी से काम में लिया जा रहा है। वैक्सी की उपलब्धता के सवाल पर उन्होंने बताया कि राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त संख्या में वैक्सीन मिल रही है और प्रॉपर वैक्सीनेशन कार्यक्रम चल रहा है। अब तक लक्ष्य का 50 फ़ीसदी लक्ष्य हासिल कर लिया है । इसके अलावा जो भी प्लान बनेगा सभी ग्राम पंचायतों में वैक्सीनेशन का कार्य शुरू होगा। जैसे-जैसे वैक्सीन की उपलब्धता होगी इस कार्यक्रम का विस्तार किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि 3300 मरीजों को जहां होम आइसोलेशन में रखा गया है इससे कम्युनिटी स्पीड कम होगा क्योंकि घरों में रहने से उन्हें ऐसा माहौल मिल जाता है जिससे वह बहुत आसानी से रह सकते हैं। और उनमें कोरोना के बहुत कम लक्षण दिखाई दे रहे हैं। जिनमें ज्यादा लक्षण है जिन्हें विशेष सलाह की जरूरत रहती है उन मरीजों को अस्पताल में रखा जा रहा है । उन्होंने ऑक्सीजन सिलेंडर के सवाल पर बताया की अलवर में कुछ लोग आक्सीजन सिलेंडरों को रख रहे हैं उन्हें यह मालूम नहीं कि ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने से पहले डॉक्टर की जरूरत पड़ती है और यह कार्य अस्पताल में ही किया जा सकता है। प्राइवेट तरीके से सिलेंडर रख लेने से कोई फायदा नहीं है।
रेमडेसीवर इंजेक्शन को लेकर उन्होंने कहा की इसको लगाने का भी एक प्रोटोकोल है और शॉर्टेज का कोई मामला नहीं है । जरूरत के हिसाब से इसको लगाया जाता है। डॉक्टर की सलाह पर ही इसे लगाया जाता है कि और उसे ही यह तय करना होता है कि किस गंभीर प्रकृति के मरीज को यह लगाया जाना है ।
जैन सुनील
वार्ता
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