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समलैंगिक विवाह: विधिक, सामाजिक एवं संवेधानिक परिपेक्ष्य" विषय पर विचार गोष्ठी

जयपुर 05 मई (वार्ता) राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन जयपुर द्वारा " समलैंगिक विवाह: विधिक, सामाजिक एवं संवेधानिक परिपेक्ष्य" विषय पर आज यहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर एस राठौड़,बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बीरी सिंह सिनसिनवार, राजस्थान बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष
एवं अतिरिक्त महाधिवक्ता एन ए नकवी, राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जसवीर सिंह, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन काउंसलर शिखा शर्मा ने वक्ता के रूप भाग लिया।
इस मौके श्रीमती शिखा शर्मा ने भारतीय संस्कृति, विभिन्न वेदों, पुराणों एवं कानूनों का हवाला देते हुए बताया कि इस सृष्टि में स्त्री एवं पुरुष दोनों के सम्मिलित प्रयासों से ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता आगे बढ़ती रही है समलैंगिक विवाह कानून जैसा कोई भी कंसेप्ट हमारी संस्कृति अथवा कानून की पुस्तकों में नहीं रहा है। अतः उच्चतम न्यायालय में इस प्रकरण में की जा रही सुनवाई अनावश्यक है।
श्री जसवीर सिंह ने कहा कि हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चन अथवा सिख सभ्यता में भी समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं है। यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है।
श्री नकवी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह कानून का कंसेप्ट इस संपूर्ण सृष्टि में किसी भी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि सृष्टि के सुचारू संचालन के लिए एक स्त्री एवं पुरुष के मध्य विवाह को ही मान्यता दी गई है। जिसका सभी धर्मों में बखूबी उल्लेख किया गया है। जो प्राकृतिक रूप से उचित भी है। हम समलैंगिक कानून के जरिए ईश्वर द्वारा प्रगति की गई व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने का कोई अधिकार नहीं रखते हैं। उच्चतम न्यायालय को अनावश्यक रूप से अपना महत्वपूर्ण समय इन अनावश्यक मुद्दों पर खर्च नहीं करना चाहिए। क्योंकि कानून बनाना विधायिका का कार्य है।
वरिष्ठ पत्रकार श्याम सोनी ने इन वक्ताओं की बात को इंगित करते हुए इस संबंध में राष्ट्रपति को एक ज्ञापन अपनी ओर से दिया है। जिसमें राष्ट उच्चतम न्यायालय में समलैंगिक विवाह को लेकर चल रही सुनवाई को तुरंत प्रभाव से रुकवाने का निवेदन किया गया है।
राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन बीरी सिंह सिनसिनवार ने भारतवर्ष एवं अनेकों देशों में विवाह को लेकर स्थापित व्यवस्था के बारे में विस्तृत रूप से बताया और समलैंगिक विवाह कानून पर उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई को अनावश्यक बताया।
न्यायमूर्ति आर एस राठौड ने विभिन्न न्यायिक दृष्टांत का हवाला देते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को उच्चतम न्यायालय के द्वारा पूर्व में दिए गए विभिन्न न्यायिक दृष्टांतों के परिपेक्ष्य में सर्वथा विपरीत बताया। साथ ही कहा कि न्यायालय को अपनी मर्यादा में रहकर ही कार्य करना चाहिए एवं कानून बनाना न्यायपालिका का कार्य नहीं है। यह कार्य विधायिका का है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी समझना आज के परिपेक्ष में अत्यंत आवश्यक है। साथ ही भारतवर्ष एवं विश्व के अनेकों देशों ने भी समलैंगिक विवाह कानून जैसी अवधारणा को गलत माना है।
उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी आबादी क्रिश्चियन धर्म के कैथोलिक समुदाय का उदाहरण देते हुए बताया कि कैथोलिक समुदाय समलैंगिक विवाह की अवधारणा का घोर विरोध करता है। इसी प्रकार हमारे गांव एवं कस्बों में समलैंगिक विवाह जैसी बातें करना भी बड़ी शर्म का विषय माना जाता है। और आज इस 21वीं सदी में भी इस प्रकार की बातें करना हमारी मर्यादा के खिलाफ माना जाता है।
जोरा
वारू
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