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छात्रों में बढ़ता अवसाद और इसके समाधान पर संगोष्ठी

जयपुर 03 जून (वार्ता) कोचिंग संस्थाओं में अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को अवसाद में जाने एवं आत्महत्या करने से बचाने के लिए बच्चों के अभिभावक , शिक्षण संस्थान, कोचिंग संस्थान मनौविज्ञानी तथा समाज शास्त्रियों के परस्पर तालमेल से इसका व्यावहारिक समाधान खोजा जा सकता है।
“छात्रों में बढ़ता अवसाद, निदान और समाधान” विषय पर सम्मन्न मुक्त मंच जयपुर की 70वीं मासिक संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह राय व्यक्त की। संगोष्ठी में भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण ओझा मुख्य अतिथि थे।
अपने अध्यक्षीय भाषण में अंग्रेजी, हिन्दी एवं संस्कृत मर्मज्ञ डा नरेन्द्र शर्मा “कुसुम” ने कहा कि नयी पीढ़ी के छात्रों में अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और असीमित महत्वाकांक्षाएं बढ़ती जा रही है। इसलिए युवा छात्र कोचिंग संस्थाओं का दामन थाम रहे है। फलत: वे मनस्तापों से पीड़ित होने न्यूरोसिस, साइकोसिस, डिप्रेशन जैसी आत्मघाती बीमारियों से ग्रस्त हो आत्महत्या करने पर विवश हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस कार्य में बच्चों के अभिभावक , शिक्षण संस्थान, कोचिंग संस्थान मनोविज्ञानी तथा समाज शास्त्रियों के परस्पर तालमेल से हम व्यावहारिक समाधान खोज सकते है।
राजस्थान सरकार में कई विभागों में वित्तीय सलाहकार रहे राजेन्द कुमार शर्मा ने कहा कि आज कोचिंग एक फैशन नहीं लग्जरी हो गया है, आर्थिक और मानसिक शोषण की इन दुकानों को तत्काल बंद कर देना चाहिए।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी आर सी जैन ने कहा कि आज से पचास वर्ष पूर्व ट्यूशन नाम को कोई नहीं जानता था लेकिन आज तो कोटा, सीकर आदि कोचिंग हब बन गए है। गली गली में कोचिंग इंस्टीट्यूट बन गए है। छात्रों का मानसिक एवं आर्थिक शोषण हो रहा है।
प्रगतिशील विचारक एवं साहित्यकार सुधांशु मिश्रा ने कहा कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में नीति निर्धारण में हमारी कोई वाइस नहीं है। नयी पीढ़ी के छात्र शैक्षणिक संस्थाओं की और मुखातिब न होकर राधागोविंद के मंदिर में मत्था टेकने एवं पूजा अर्चना करना सार्थक समझते है। आज उच्च शिक्षित युवक भी बेरोजगार के रुप में घूम रहे है और अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या कर रहे है।
संयोजकीय वक्तव्य में शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि हर मां बाप चाहता है कि उसका लाल किसी प्रतिष्ठान में या अखिल भारतीय सेवाओं में चुन लिया जाये और इसके लिए वे कोचिंग की शरण में आ जाते है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2019 में 13 हजार छात्रों ने आत्महत्या की और यह चार प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है। पर सफलता तो बीस प्रतिशत को भी नहीं मिल पाती। इस कारण असफल छात्र अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या का वरण कर लेते है।
श्री कृष्ण शर्मा ने बताया कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेकर मनोवैज्ञानिक तंत्र विकसित करने के लिए महाधिवक्ता तथा न्यायमित्र को आग्रह किया है। उन्होंने मैंटल फाउडेशन जैसी संस्थाओं को सक्रिय करने की जरुरत बताते हुए कहा कि राजस्थान कोचिंग संस्थान नियंत्रण एवं विनिमय बिल पर गंभीरता से कार्य करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोचिंग सस्थाओं में प्रवेश के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट भी अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए ताकि पात्र छात्रों को ही प्रवेश मिले और अपात्रों को निराशा, हताशा एवं अवसाद से बचाया जा सके ।
जोरा
वार्ता
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