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जैन धर्म का पर्युषण महापर्व एक सितंबर से प्रारम्भ

जयपुर 28 अगस्त (वार्ता) जैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक पर्युषण महापर्व का आगामी एक सितम्बर से प्रारंभ होगा तथा आठ सितंबर को ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ के साथ पूर्णिहूति होगी।
श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने बताया कि श्वेतांबर एवं दिगंबर समुदाय के धर्मावलंबी भाद्रपद मास में ‘पर्युषण महापर्व’ की साधना - आराधना करते है। श्वेतांबर समुदाय के आठ दिवस को ‘पर्युषण’ के नाम से जाना जाता है जो कि एक से आठ सितम्बर को ‘संवत्सरी महापर्व’ (क्षमापर्व) के दिवस के साथ पूर्ण होगें। वहीं दिगम्बर समुदाय के दस दिवसों को ‘दस लक्षण पर्व’ के नाम से जाना जाता है जो कि आठ सितंबर से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर को समाप्त होगा।
उन्होंने बताया कि चातुर्मास प्रारम्भ के उनपचास (49) या पचासवें (50) दिवस पर संवत्सरी पर्व की साधना की जाती है। इसी क्रम में देश के विविध अंचलों चातुर्मासरत श्रमण. श्रमणियों के पावन सान्निध्य में जैन धर्मावलम्बि तप - त्याग - साधना - आराधना पूर्वक इस महापर्व को मनाएगें। इन दिवसों में जैन अनुयायियों के मुख्यतया पांच प्रमुख अंग हैं स्वाध्याय, उपवास, प्रतिक्रमण, क्षमायाचना और दान।
डॉ. पुष्पेन्द्र ने बताया कि पर्युषण पर्व जिसे क्षमा पर्व के नाम से भी जाना जाता है, पर्युषण का अर्थ दो शब्दों परि (स्वयं को याद करना) और वासन (स्थान) से लिया गया है. इसका मतलब है कि इस उत्सव के दौरान सभी जैन एक साथ आते हैं और अपने मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए एक साथ उपवास और ध्यान करते हैं। जैन धर्म में अहिंसा एवं आत्मा की शुद्धि को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। मान्यता है कि प्रत्येक समय हमारे द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कार्यों से कर्म बंध होता है, जिनका फल हमें भोगना पड़ता है। शुभ कर्म जीवन व आत्मा को उच्च स्थान तक ले जाते हें, वही अशुभ कर्मों से हमारी आत्मा मलिन होती है. जिसको पवित्र व स्वच्छ करने के लिए पर्युषण पर्व की आराधना की जाती है।
उल्लेखनीय है कि श्वेतांबर जैन समुदाय में पर्युषण पर्व का आरंभ भादौ के कृष्ण पक्ष से ही होता है जो भादौ के शुक्ल पक्ष पर संवत्सरी से पूर्ण होता है। यह इस बात का संकेत है कि कृष्ण पक्ष यानी अंधेरे को दूर करते हुए शुक्ल पक्ष यानी उजाले को प्राप्त कर लो।
रामसिंह.संजय
वार्ता
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