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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


प्रदूषण से होती है एक करोड़ 26 लाख लोगों की मौत

प्रदूषण से होती है एक करोड़ 26 लाख लोगों की मौत

नयी दिल्ली, 17 जनवरी (वार्ता) पर्यावरण और स्वास्थ्य से संबंधित विश्व की तीन बड़ी संस्थाओं के मुताबिक प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में प्रति वर्ष करीब एक करोड़ 26 लाख लोगों की मौत हो जाती है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ), विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के प्रमुखों के एक संयुक्त संपादकीय में कहा गया है कि पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर जानलेवा होता जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। उन्होंने कहा,“ हमें वैश्विक पर्यावरण को स्वच्छ करने की तत्काल आवश्यकता है।” डब्ल्यूएचओ की महानिदेशक सुश्री मार्गरेट चान ने कहा, “मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक पर्यावरणीय खतरा वायु प्रदूषण है जो प्रमुखत: ऊर्जा उत्पादन के कारण होता है। इसके कारण हृदय और फेफड़े से जुड़ी समस्यायें और कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं। वायु प्रदूषण से प्रति वर्ष लगभग छह लाख 50 हजार लोगों की मौत हो जाती है।” सुश्री चान ने कहा कि ऊर्जा के उत्पादन से प्राणघातक प्रदूषण उत्सर्जित होता हैं जिनमें ब्लैक कार्बन जैसे तत्व शामिल हैं। ऊर्जा संयंत्र ग्रीन हाउस गैस ‘मीथेन’ और ‘कार्बन डाइआक्साइड’ भी छोड़ते हैं। ये सभी गैसें जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक बनते हैं जिससे पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करता है। ये खाद्य पदार्थ, जल और आवास को प्रभावित करते हैं। डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेट्री टलास और यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक श्री इरिक सोलहिम ने कहा कि पर्यावरण को अत्यंत नुकसान पहुंचा रहे कारकों के निदान के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हल किया जा सके। इसके लिए समन्वित वैश्विक तंत्र संबंधी योजना की आवश्यकता है। इसी के जरिए इसे हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2050 तक विश्व की 66 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहने लगेगी जिससे भारी यातायात, निम्न स्तरीय आवास, पानी की सीमित उपलब्धता और स्वच्छता से जुड़ी सेवाओं के संकट के अलावा स्वास्थ्य संबंधी खतरों का भी सामना करना पड़ेगा।


                  श्री इरिक सोलहिम ने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी खतरे काफी जटिल हैं और यह परस्पर एक-दूसरे से संबद्ध हैं जिन्हें अल्पकालिक उपायों या व्यक्तिगत स्तर पर नहीं सुलझाया जा सकता। इसी के मद्देनजर 2030 तक सभी देशों की ओर से सतत विकास के लिए अपनाया गया एजेंडा अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विश्व की अपनी तरह की पहली वैश्विक योजना है जो सभी समाजों द्वारा सभी समाजों के लिए सुसंगत दीर्घकालीन कार्रवाई का एक अनुपम अवसर प्रदान करेगी। विश्व की कई सरकारें पर्यावरण, जलवायु और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने के वास्ते संयुक्त कार्रवाई के लिए परस्पर जुड़ाव की कोशिश कर रही हैं । मोरक्को सरकार के आह्वान पर स्वास्थ्य एवं पर्यावरण मंत्रियों ने मराकेश मंत्रिस्तरीय स्वास्थ्य पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन संबंधी घोषणा पर हस्ताक्षर किये हैं। श्री एरिक ने कहा कि अब चुनौती यह है कि इस घोषणापत्र के अनुसार कार्रवाई कैसे की जाये। उन्होंने कहा कि आसान उपाय यह है कि वाहनों से निकलने वाली प्रदूषित वायु के उत्सर्जन को कम किया जाये और रैपिड यातायात व्यवस्था अपनायी जाये जिससे मानव जीवन को बचाया जा सके। कुछ देशों ने वर्ष 2017 तक ‘लो सल्फर फ्यूल’ का इस्तेमाल करने की प्रतिबद्धता जताई है। कुछ देशों ने 2025 तक डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनायी है। यह उपाय 24 लाख जीवन प्रतिवर्ष बचाने में मददगार साबित होंगे। इससे 2050 तक वैश्विक तापमान को 0़ 5 सेल्सियस कम होगा। उन्होंने कहा कि इससे कई मामलों में लागत से अधिक फायदे दिखाई देंगे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संबंधी खतरे न केवल मानव जाति के लिए बल्कि स्वास्थ्य सेवा संबंधी लगतें के लिए बड़ी समस्या है। स्वास्थ्य संबंधी लागतें विश्व भर की सरकारों के लिए बड़ा बोझ बनती जा रही हैं। पर्यावरण संबंधी जटिल मसलों को जल्द निपटाना न केवल देशों-मंत्रियों के हित में है बल्कि यह संंयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है कि वे सभी काे साथ लेकर सभी को सहयोग करें। मोरक्को सरकार के आह्वान पर विभिन्न मंत्रियों ने स्वास्थ्य, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मराकेश मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं जिसमें माना गया है कि जीवों को बचाने और पृथ्वी की सुरक्षा के लिए वर्तमान में कोई वैश्विक तंत्र नहीं है। इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को इसके लिए एक तंत्र स्थापित करना चाहिए। श्रवण.सोनू . टंडन वार्ता

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