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राज्य


पुन: जारी राजनीति नर्मदा गुजरात मुख्यमंत्री दो अंतिम गांधीनगर

श्री रूपाणी ने कहा कि पहले भी कांग्रेस की सरकारों ने नर्मदा के मुद्दे पर गुजरात के साथ कई बार अन्याय किया है। सात-सात साल तक सरदार सरोवर बांध पर दरवाजे लगाने की अनुमति नहीं दी गई, बांध की ऊंचाई बढ़ाने नहीं दी गई और बांध का निर्माण कार्य पूरा नहीं होने दिया। कुल मिलाकर पानी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस राजनीति करती ही आई है।
उन्होंने इस संदर्भ में स्पष्ट किया कि नर्मदा के पानी का बंटवारा नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के 1978 के फैसले के आधार पर चार भागीदार राज्यों के बीच हो रहा है और उसमें बदलाव करने का किसी राज्य को अधिकार नहीं है।
श्री रूपाणी ने मध्य प्रदेश के उन आरोपों को भी सिरे से खारिज कर दिया जिसके अनुसार गुजरात नर्मदा के जल से बिजली का उत्पादन नहीं कर रहा है और उसके चलते मध्य प्रदेश को नुकसान हो रहा है।
नर्मदा के केनाल हेड पावर हाउस से 250 मेगावाट का बिजली उत्पादन जारी है और उसका 57 फीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश को मिल भी रहा है। उत्पादित बिजली का 16 फीसदी हिस्सा गुजरात का है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गत 15 अप्रैल को सभी भागीदार राज्यों की बैठक आयोजित हुई थी जिसमें यह निर्णय किया गया कि कंक्रीट ग्रेविटी डैम को पूरा भरकर उसकी और दरवाजों की जांच की जानी जरूरी है। गुजरात ने यह निर्णय एकतरफा नहीं लिया है बल्कि एनसीए को औपचारिक प्रस्ताव देकर भागीदार राज्यों की यह बैठक बुलाने के बाद यह फैसला लिया गया है। एक बार सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 131 मीटर से अधिक हो उसके बाद अधिकत ऊंचाई 138.68 मीटर तक डैम धीरे-धीरे भरा जाए तो अतिरिक्त पानी से नदी में बना बड़ा पावर हाउस भी चलाया जा सकेगा। 138 मीटर की ऊंचाई तक डैम को भरना और जांच करना सभी राज्यों के हित में है इसीलिए गुजरात ने ऐसा आग्रह किया है।
उन्होंने कहा कि 40 वर्षों से चारों राज्य सहयोग और अच्छे वातावरण में जल बंटवारे सहित अन्य मुद्दों पर कार्यरत हैं, तब उस माहौल को बिगाड़ने का प्रयास मध्य प्रदेश न करे।
मुख्यमंत्री ने विस्थापितों के विषय में मध्य प्रदेश के मंत्री के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि गुजरात ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 2017 से अब तक सभी काम पूरे किए हैं। उन्होंने छह हजार परिवारों का पुनर्वास अब तक नहीं होने के मध्य प्रदेश के तर्क के संदर्भ में कहा कि इस मुद़दे को लेकर 12 जुलाई को बुलाई गई बैठक में मध्य प्रदेश का कोई अधिकारी उपस्थित नहीं रहा और दोबारा 18 जुलाई की बैठक का बहिष्कार कर एनसीए के समक्ष विरोध जताया और अब वे विस्थापितों की बातें कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने धमकी वाली भाषा के प्रयोग को मध्य प्रदेश के लिए अशोभनीय करार देते हुए कहा कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण तथा उच्चतम न्यायालय के निर्णय को जनता के हित में वहां की सरकार स्वीकार करे।
रजनीश
वार्ता
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