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आधुनिक तकनीक से भूख और कुपोषण का मुकाबला करने के समाधान सुझायें वैज्ञानिक - प्रधानमंत्री

गांधीनगर, 28 जनवरी (वार्ता) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज वैज्ञानिकों से कृषि संबंधी विभिन्न मुद्दों का आधुनिक जैवतकनीक, कृत्रिम बौद्धिकता (एआई), ब्लॉक चेन तकनीक और ड्रोन तकनीक आदि के जरिये ऐसे समाधान प्रस्तुत करने का आह्वान किया जिनसे भूख, कुपोषण और गरीबी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया जा सके।
श्री मोदी ने वीडियो क्रांफ्रेस के जरिये यहां महात्मा मंदिर में आज से आयोजित तीसरे वैश्विक आलू सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को अपने संबोधन में यह आहवान किया।
उन्होंने कहा कि इस आयोजन की खास बात ये भी है कि यहां पोटैटो कांफ्रेंस, एग्री एक्सपो तथा लगभग छह हजार किसानो को खेतों तक ले जाने वाले पोटैटो फील्ड डे तीनों एक साथ हो रहे हैं। यह दिल्ली से बाहर हो रहा है, हजारों आलू किसानों के बीच हो रहा है। गुजरात में इसका होना इसलिए भी अहम है क्योंकि यह राज्य में बीते 2 दशकों में आलू उत्पादन और आलू का निर्यात का केंद्र बन कर उभरा है। बीते 10-11 साल में जहां भारत का आलू उत्पादन करीब 20 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, वहीं गुजरात में यह 170 प्रतिशत से बढ़ा है। ऐसा बेहतर नीतिगत निर्णयों के चलते संभव हुआ है। अधिकतर आलू प्रसंस्करण इकाइयां और निर्यातक गुजरात में ही हैं। गुजरात में कोल्ड स्टोरेज का एक बड़ा और आधुनिक नेटवर्क भी है। इसके अलावा आज सुजलाम-सुफलाम और सौनी योजना के माध्यम से गुजरात के उन क्षेत्रों में भी सिंचाई की सुविधा पहुंची है, जो कभी सूखे से प्रभावित रहते थे। सरदार सरोवर डैम के कारण गुजरात का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के दायरे में आ गया। नहरों का इतना व्यापक नेटवर्क बहुत कम समय में तैयार करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। सिंचाई में भी वैज्ञानिक और तकनीकी प्रक्रिया अपनाने से लगातार सुधार होने लगा है।
श्री मोदी ने कहा कि गुजरात के ये प्रयोग बीते 5 वर्ष में पूरे देश के लिए भी किए गए हैं। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर के हम लगातार आगे बढ़ते गए है और बहुत कुछ हासिल भी किया है। महत्तवपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं और किसानों के प्रयास और सरकार की नीतियों का मिलाजुला परिणाम है कि अनेक अनाजों और दूसरे खाने के सामान के उत्पादन में भारत दुनिया के शीर्ष तीन देशों में है। एक समय में हमारे सामने दाल का संकट आ गया था, लेकिन इस संकट पर भी देश के किसानों ने ठान ली और देश ने विजय पाई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि खेती को लाभकारी बनाने के लिए सरकार का ध्यान खेत से लेकर खाद्य प्रसंस्करण और वितरण केंद्र तक एक आधुनिक और व्यापक नेटवर्क खड़ा करने पर है। आने वाले 5 वर्षों में सिर्फ सिंचाई और खेती से जुड़ी दूसरी बुनियादी ढांचाओं पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं। सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। चाहे इस सेक्टर को शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलने का फैसला हो या फिर पीएम किसान संपदा योजना के माध्यम से मूल्य वर्धन में मदद, हर स्तर पर कोशिश की जा ही है। इस योजना के तहत बहुत ही कम समय में सैकड़ों करोड़ रुपए की अनेक परियोजनाएं पूरी हो चुक हैं।
श्री मोदी ने कहा कि सरकार का प्रयास है कि खेती की लागत कम हो, किसान का खर्च कम हो। सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से, किसानों के अनेक छोटे खर्चों को पूरा करने में मदद मिली है। अब तक 8 करोड़ किसानों को इसका लाभ दिया जा चुका है। इस महीने के शुरुआत में, एक साथ 6 करोड़ किसानों के बैंक खातों में, 12 हजार करोड़ रुपए की राशि ट्रांसफर करके एक नया रिकॉर्ड भी बनाया गया है। किसान और उपभोक्ता के बीच के कई स्तरों और बिचौलियों और उपज की बर्बादी को कम करना हमारी प्राथमिकता है। इसके लिए परंपरागत कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का जोर कृषि टेक्नॉलॉजी आधारित स्टार्ट अप्स को बढावा देने पर भी है जिससे किसानों को पानी, खाद और कीटनाशकों के उचित उपयोग में मदद मिलेगी। इससे लागत कम होगी और वैश्विक बाजारों में भारतीय किसानों की ज्यादा भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।
उन्होंने कहा कि सरकार के ये प्रयास और सफल तभी होंगे, जब वैज्ञानिक और शोधकर्ता शीघ्र नष्ट होने वाली सब्जियों को और अधिक टिकाउ बनाने के लिए सस्ते समाधान तैयार करें। इसके लिए हमें ऐसे सस्ते बीज भी तैयार करने होंगे जो पानी कम इस्तेमाल करें, जो अधिक पोषक भी हों और उन जीवनकाल और उत्पादकता भी ज्यादा हो। इसके साथ-साथ आधुनिक जैवतकनीक, कृत्रिम बौद्धिकता (एआई), ब्लॉक चेन तकनीक और ड्रोन तकनीक आदि कैसे बेहतर उपयोग हो सकता है, इसको लेकर भी उनके सुझाव और समाधान अहम रहेंगे। आलू की उपयोगिता को देखते हुए, आलू उपक्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नई नीति और शोध का एजेंडा बनाने का समय आ गया है। इसके मूल में भूख और गरीबी से लड़ाई और वैश्विक खाद्य सुरक्षा होनी चाहिए। वैज्ञानिकों के प्रयासों से ही संभव हुआ है कि 19वीं सदी में आलू की बीमारी के कारण यूरोप और अमेरिका में जो स्थिति बनी, वह दोबारा नहीं आई। 21 वीं सदी में भी कोई भूखा और कुपोषित ना रहे,इसकी भी एक बड़ी जिम्मेदारी वैज्ञानिकों के कंधों पर है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी तथा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पुरुषोत्तम रुपाला और गुजरात के कृषिमंत्री आर सी फलदू भी उपस्थित थे।
रजनीश
वार्ता
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