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राज्य


राष्ट्रीय पीठासीन समापन प्रधानमंत्री दो अंतिम केवड़िया

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा संविधान निर्माण की 71वीं सालगिरह के पुनीत अवसर पर देश की एकता एवं अखंडता के सूत्रधार सरदार वल्लभभाई पटेल की विशाल प्रतिमा (स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी) की छत्रछाया में संविधान की शपथ लेकर पीठसीन अधिकारीयों को दिव्य अनुभूति हुई है।
उन्होंने कहा कि विषम परिस्थितियों के बावजूद दो दिनों के इस महासम्मेलन में 20 विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी उपस्थित रहे। सम्मेलन में सभी का यह मत था कि संविधान की मूल भावना के अनुसार लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को अपनी-अपनी सीमाओं के अंदर सहयोग, सामंजस्य और समन्वय की भावना से कार्य करना चाहिए। सभा ने लोकतंत्र उत्सव के आयोजन, राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ विधायिका पुरस्कार की स्थापना और नागरिकों में मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता के प्रसार का भी निर्णय लिया।
श्री बिरला ने कहा कि हमारे राष्ट्रनायकों ने दलगत और व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर एवं नागरिकों को केन्द्र में रखकर संविधान की रचना की थी। आज हमारा भी यही कर्तव्य है कि हम राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कार्य करें। हम भले ही अलग-अलग दलों से चुनकर आते हैं, परंतु हमारा उद्देश्य देशहित और जनहित ही होता है। आज के परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि हम अपने अधिकारों से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का समर्पित भाव से पालन करें।
राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने विधायिकाओं द्वारा कानूनों के तेज़ी से पारित होने पर जोर देते हुए कहा कि इसमें देरी होने से व्यापक सामाजिक-आर्थिक हानि होने की संभावना होती है। कानूनों को समय की आवश्यकताओं के आधार पर बदलते रहना चाहिए। डिजिटल युग में फिजिकल युग के कानूनों की समीक्षा आवश्यक है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो निस्संदेह देश में उपलब्ध विशाल मानव संसाधन और तकनीकी संसाधनों का उचित
प्रयोग नहीं हो पायेगा। उन्होंने विधायिकाओं के नियमों और प्रक्रियाओं की समीक्षा और आधुनिकीकरण पर भी जोर दिया जिससे वे समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदल सकें।
ज्ञातव्य है कि सम्मेलन का उद्घाटन कल राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया था। पीठासीन अधिकारीयों ने आज 71 वें संविधान दिवस के अवसर पर विधानमंडलों को और अधिक जवाबदेह बनाने की शपथ ली। इसके अतिरिक्त, सम्मेलन में आए शिष्टमंडल के सभी सदस्यों ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भी पाठ किया। 2020 को पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के शताब्दी वर्ष के रूप में भी मनाया जा रहा है। सम्मेलन की शुरूआत वर्ष 1921 में हुई थी। सम्मेलन का विषय “सशक्त लोकतंत्र हेतु विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का आदर्श समनव्य'' था।
सम्मलेन के बाद एक संकल्प पारित किया गया, जिसमे कहा गया है कि संविधान ने सदैव जनता को केंद्र में रखा है। राज्य का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में जनता के प्रति उत्तरदायी है। संविधान की सुरक्षा करने और उसे सुदृढ़ बनाने की साझा ज़िम्मेदारी राज्य के तीनों अंगों की है। यह भी निर्णय लिया गया की उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की तर्ज पर उत्कृष्ट विधानमंडल पुरस्कार स्थापित किया जाये ।
सम्मलेन के दौरान एक प्रस्ताव यह भी पारित किया गया कि राष्ट्रीय सम्मेलनों में लोकतन्त्र के उत्सव का आयोजन किया जाये ताकि विधायी कार्यो के साथ साथ इन सम्मेलनों के माध्यम से जनता को लोकतन्त्र के विभिन्न आयामों से भी अवगत कराया जा सके। इसके अतिरिक्त, “संविधान और मौलिक कर्तव्यों” विषय पर भी एक संकल्प पारित किया गया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है की हम सब अपने अधिकारों का लाभ उठाते हुए अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से निर्वहन करें ताकि देश के सभी वर्गों का जीवन बदलने में हम अपना योगदान दे सकें।
रजनीश
वार्ता
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