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गुजरात में कार्बन उत्सर्जन में आई 55 प्रतिशत की कमी

गांधीनगर, 05 जून (वार्ता) गुजरात में नई सौर नीति के लागू होने के बाद ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में 55 प्रतिशत की कमी आई है।
गुजरात के ऊर्जा विभाग ने विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर सोमवार को यह जानकारी दी है कि राज्य की नई सौर नीति 2021 के कारण ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन को 55 प्रतिशत तक कम करने में राज्य ने सफलता हासिल की है। राज्य सरकार ने 29 दिसम्बर 2020 को गुजरात सौर नीति 2021 जारी की थी और पिछले दो साल पांच महीनों में राज्य में ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन में 93.2 लाख टन कम कार्बन उत्सर्जन हुआ है।
विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर पर्यावरण संरक्षण पर ऊर्जा विभाग के योगदान को लेकर गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) ने बताया कि “गुजरात में अक्षय ऊर्जा की स्थापना क्षमता में अधिक वृद्धि के कारण बिजली उत्पादन के पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता कम हो गई है जिस वजह से गुजरात में ऊर्जा उत्पादन के कारण होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आई है। कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों को देखें तो दिसम्बर 2020 में 174.2 लाख टन कम कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) एमिशन की तुलना में अप्रैल 2023 में 267.4 लाख टन कम सीओ2 एमिशन हुआ है। इसके अलावा सौर नीति-2021 की घोषणा के बाद, जीयूवीएनएल ने 6180 मेगावाट सौर और 1100 मेगावाट पवन ऊर्जा के लिए समझौता किया है जिसके परिणामस्वरूप अगले तीन वर्षों में 110.6 लाख टन सीओ2 एमिशन में कमी आएगी।”
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में गुजरात सरकार कार्बन उत्सर्जन को दिनोंदिन कम करने में प्राथमिकता के साथ काम कर रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने 2022 में एक समर्पित डीकार्बनाइजेशन सेल की स्थापना भी की है। यह सेल गुजरात ऊर्जा प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (जीईटीआरआई) के तहत काम कर रहा है। इस सेल में ऊर्जा परिसंचरण, ऊर्जा उत्पादन, वितरण, वित्तीय और वाणिज्य कार्यक्षेत्र के विशेषज्ञ अधिकारी शामिल हैं जो गुजरात में डीकार्बोनाइजेशन और नेट जीरो जैसे पहलुओं पर दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं।
गुजरात सरकार अपनी मौजूदा ऊर्जा आवश्यकता और भविष्य में होने वाली ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति के लिए रिन्यूएबल एनर्जी को अधिक प्राथमिकता दे रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि दिसंबर 2020 तक गुजरात में 13,039 मेगावाट की संस्थापित क्षमता के साथ रिन्यूएबल ऊर्जा (सोलार + विंड + हाइड्रो एनर्जी ) का हिस्सा 35 फीसदी था जो अप्रैल 2023 तक संस्थापित क्षमता में 20,432 मेगावाट के योगदान के साथ रिन्यूएबल एनर्जी का हिस्सा बढ़कर 44 फीसदी हो गया है। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि अक्षय ऊर्जा की इस संस्थापित क्षमता को वर्ष 2030 तक 80 फीसदी तक ले जाया जाए और राज्य की 50 फीसदी की ऊर्जा ज़रूरत को अक्षय ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जाए।
इसके अलावा, जीयूवीएनएल ने एनर्जी स्टोरेज सिस्टम्स (इएसएस) के लगभग 2379 एमडब्लूएच के टाई-अप के लिए दो निविदाएं और विभिन्न अन्य चर्चाएं शुरू कर दी हैं। साथ ही, जीएसईसीएल (गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने गुजरात में पंप स्टोरेज प्लांट्स (पीएसपी) के लिए 33 संभावित स्थानों और आठ जलाशय स्थानों की पहचान की है और एनएचपीसी (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड) ने भी 1.5 महीने के भीतर सभी 41 स्थानों के लिए व्यवहार्यता अध्ययन पूरा करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है।
इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2030 तक देश में 50 फीसदी कार्बन उत्सर्जन मुक्त ऊर्जा तथा 100 फीसदी इलेक्ट्रिक वाहन के इस्तेमाल के लक्ष्य को साकार करने के लिए हाल ही में गत शुक्रवार (02 जून) को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल की उपस्थिति में गुजरात सरकार ने टाटा समूह के साथ लीथियम आयन सेल की विनिर्माण को लेकर समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया है। इस एमओयू के बाद गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य बन जाएगा जहाँ लिथियम आयन सेल का विनिर्माण होगी। भारत को 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन एमिशन बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य के साथ श्री मोदी का गृह राज्य गुजरात तेजी से काम कर रहा है।
राज्य सरकार के ये सभी प्रयास गुजरात में न केवल एक सस्टेनेबल एनर्जी के ईकोसिस्टम का निर्माण करेंगे बल्कि इसके बाई-प्रोडक्ट के रूप में राज्य सरकार के द्वारा तय कम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद करेंगे।
अनिल, उप्रेती
वार्ता
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