राज्यPosted at: Sep 24 2017 7:18PM सरकारी उदासीनता एवं नकली उत्पाद से बनारसी वस्त्र उद्योग में गिरावट
जयपुर 24 सितम्बर (वार्ता) विश्व प्रसिद्ध बनारसी वस्त्रों के प्रति घरेलू उपभोक्ताओं के बढ़ते रूझान के बावजूद सरकारी उपेक्षा और नकली उत्पादों की भरमार से बनारसी रेशम वस्त्र उद्योग में लगातार गिरावट आ रही है। वाराणसी के उत्पादक और रेशमी वस्त्र निर्यातक एसोसिएशन के बैनर तले जयपुर में आयोजित चार दिवसीय “वस्त्र 2017” प्रदर्शनी में भाग लेने आये बनारसी रेशम वस्त्र उत्पादक वीव इंडिया के प्रवक्ता राजेश कुशवाहा ने आज यहां “यूनीवार्ता” से बातचीत में बताया कि वाराणसी साड़ी, दुपट्टों उद्योग देश की समृद्धशाली कला का प्रतिबिम्ब है लेकिन बुनकरों के साथ ही उत्पादकों को प्रात्साहन नहीं मिलने तथा गुजरात के सूरत शहर से नकली साडियों का बाजार में प्रचलन के कारण इसकी चमक फीकी हुयी है। श्री कुशवाहा ने कहा कि देश में बनारसी साड़ी और बडे दुपट्टों का वार्षिक कारोबार एक हजार करोड़ रुपए का है यदि सरकार द्वारा बुनकरों और वस्त्र उत्पादकों को प्रोत्साहन दिया जाय तो यह कारोबार बढ़कर प्रतिवर्ष दस हजार करोड़ रूपये से भी अधिक का हो सकता है। उन्होंने कहा कि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने से उत्पादकों और बुनकरों को इस उद्योग को बढावा मिलने की उम्मीद थी। प्रधानमंत्री ने भी बुनकरों और उत्पादकों को राहत देने की घोषणा की थी लेकिन तीन साल की अवधि बीत जाने के बावजूद अभी तक ठोस कार्य नहीं हुआ है। सरकार की ओर से बनारस में हाल ही में ट्रेड फेसेलीटिज सेंटर का उद्घाटन किया गया है लेकिन इसकी शुरूआत अभी नहीं हुयी है। उन्होंने कहा कि बनारस के प्रसिद्ध रेशम वस्त्र उद्योग को बचाने के लिये ऐसोसिएशन की ओर से आठ उत्पादों का पंजीयन कराया गया है ताकि इन उत्पादों को नकली नाम से विक्रय नहीं किया जा सके और यदि ऐसा करता कोई पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकें। श्री कुशवाहा ने बताया कि वीव इंडिया की ओर से प्रदर्शनी में लगाये गये उत्पाद के प्रति घरेलू उपभोक्ताओं के साथ ही विदेशी उत्पादकों ने भारी रूचि दिखाई है। उन्होंने कहा कि विदेशी उत्पादकों ने जहां छोटे दुपट्टों को ज्यादा पंसद किया है वहीं घेरलू उत्पादकों ने बड़े दुपट्टों के अलावा साड़ियों में रूचि ली है। अजय जोरा गोस्वामी वार्ता