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उत्तर प्रदेश किसान बिदुअा दो झांसी

श्री बिदुआ ने कहा कि किसानों के जबरदस्त विरोध के बाद जब बुंदेलखंड सूखाग्रस्त घोषित किया भी गया तो उससे और हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी। एक ही जिले में एक ही तहसील में कुछ गांव सूखाग्रस्त बताये गये जबकि नजदीकी ही दूसरे गांवों को इससे बाहर रखा गया। इसी तरह की स्थिति सूखे के कारण बरबाद फसल के सर्वेक्षण में रही । एक गांव की फसल बरबाद बतायी गयी तो नजदीकी गांव में सब सामान्य बताया गया। इस तरह का मजाक किसानों के साथ पिछली किसी सरकार ने नहीं किया।
किसान नेता ने बताया कि एक के बाद एक लगातार पड़ती कुदरत और सरकार की मार ने किसान को तोड़ कर रख दिया है और अब हमारे पास आंदोलन के लिए घरों से निकलने के अलावा और कोई चारा नहीं है । हमारे खेत और फसल पहले सूखे से बरबाद हुई उसके बाद वर्षाकाल में अतिवृष्टि ने पूरी फसल चौपट कर दी। ऐसे हालात में किसानों को सरकार का सहारा था लेकिन उसके सर्वेक्षणों की माने तो बुंदेलखंड में हालात पूरी तरह सामान्य है। रबी की फसल भी सौ प्रतिशत बरबाद हो चुकी है लेकिन सरकारी आंकडें मात्र 33प्रतिशत से कुछ अधिक की बरबादी बता रहे हैं।
उन्होंने कहा कि किसानों की व्यथा यहीं खत्म नहीं हो जाती । एक ओर तो फसल बरबाद दूसरी ओर विकास के नाम पर किसानों की जो जमीनें उचित मुआवजा देने की बात कर सरकार ने लीं उसका मुआवजा भी पीडित किसानों को पूरा नहीं दिया गया। यहां पथरई और लखेरी बांध 2007 में यहां बनाये गये थे जिन किसानों की जमीन और मकान इन बांधों के निर्माण में डूब क्षेत्र में गये उनमें से चार में से तीन गांवों को तो मुआवजा और अनुकंपा राशि दे दी गयी लेकिन एक इमलिया गांव के किसानों को न तो मुआवजा दिया गया और न ही अनुकंपा राशि ही जारी की गयी।
पिछले 11 वर्षों से इस गांव के किसान अपने जायज पैसे की वाट जोह रहे हैं। इस बीच मौसम की मार से खेती भी पूरी तरह चौपट हो गयी है। ऐसे हालात में किसानों के पास अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है।
सोनिया प्रदीप
जारी वार्ता
श्री बिदुआ ने कहा कि किसानों के जबरदस्त विरोध के बाद जब बुंदेलखंड सूखाग्रस्त घोषित किया भी गया तो उससे और हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी। एक ही जिले में एक ही तहसील में कुछ गांव सूखाग्रस्त बताये गये जबकि नजदीकी ही दूसरे गांवों को इससे बाहर रखा गया। इसी तरह की स्थिति सूखे के कारण बरबाद फसल के सर्वेक्षण में रही । एक गांव की फसल बरबाद बतायी गयी तो नजदीकी गांव में सब सामान्य बताया गया। इस तरह का मजाक किसानों के साथ पिछली किसी सरकार ने नहीं किया।
किसान नेता ने बताया कि एक के बाद एक लगातार पड़ती कुदरत और सरकार की मार ने किसान को तोड़ कर रख दिया है और अब हमारे पास आंदोलन के लिए घरों से निकलने के अलावा और कोई चारा नहीं है । हमारे खेत और फसल पहले सूखे से बरबाद हुई उसके बाद वर्षाकाल में अतिवृष्टि ने पूरी फसल चौपट कर दी। ऐसे हालात में किसानों को सरकार का सहारा था लेकिन उसके सर्वेक्षणों की माने तो बुंदेलखंड में हालात पूरी तरह सामान्य है। रबी की फसल भी सौ प्रतिशत बरबाद हो चुकी है लेकिन सरकारी आंकडें मात्र 33प्रतिशत से कुछ अधिक की बरबादी बता रहे हैं।
उन्होंने कहा कि किसानों की व्यथा यहीं खत्म नहीं हो जाती । एक ओर तो फसल बरबाद दूसरी ओर विकास के नाम पर किसानों की जो जमीनें उचित मुआवजा देने की बात कर सरकार ने लीं उसका मुआवजा भी पीडित किसानों को पूरा नहीं दिया गया। यहां पथरई और लखेरी बांध 2007 में यहां बनाये गये थे जिन किसानों की जमीन और मकान इन बांधों के निर्माण में डूब क्षेत्र में गये उनमें से चार में से तीन गांवों को तो मुआवजा और अनुकंपा राशि दे दी गयी लेकिन एक इमलिया गांव के किसानों को न तो मुआवजा दिया गया और न ही अनुकंपा राशि ही जारी की गयी।
पिछले 11 वर्षों से इस गांव के किसान अपने जायज पैसे की वाट जोह रहे हैं। इस बीच मौसम की मार से खेती भी पूरी तरह चौपट हो गयी है। ऐसे हालात में किसानों के पास अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है।
सोनिया प्रदीप
जारी वार्ता
श्री बिदुआ ने कहा कि किसानों के जबरदस्त विरोध के बाद जब बुंदेलखंड सूखाग्रस्त घोषित किया भी गया तो उससे और हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी। एक ही जिले में एक ही तहसील में कुछ गांव सूखाग्रस्त बताये गये जबकि नजदीकी ही दूसरे गांवों को इससे बाहर रखा गया। इसी तरह की स्थिति सूखे के कारण बरबाद फसल के सर्वेक्षण में रही । एक गांव की फसल बरबाद बतायी गयी तो नजदीकी गांव में सब सामान्य बताया गया। इस तरह का मजाक किसानों के साथ पिछली किसी सरकार ने नहीं किया।
किसान नेता ने बताया कि एक के बाद एक लगातार पड़ती कुदरत और सरकार की मार ने किसान को तोड़ कर रख दिया है और अब हमारे पास आंदोलन के लिए घरों से निकलने के अलावा और कोई चारा नहीं है । हमारे खेत और फसल पहले सूखे से बरबाद हुई उसके बाद वर्षाकाल में अतिवृष्टि ने पूरी फसल चौपट कर दी। ऐसे हालात में किसानों को सरकार का सहारा था लेकिन उसके सर्वेक्षणों की माने तो बुंदेलखंड में हालात पूरी तरह सामान्य है। रबी की फसल भी सौ प्रतिशत बरबाद हो चुकी है लेकिन सरकारी आंकडें मात्र 33प्रतिशत से कुछ अधिक की बरबादी बता रहे हैं।
उन्होंने कहा कि किसानों की व्यथा यहीं खत्म नहीं हो जाती । एक ओर तो फसल बरबाद दूसरी ओर विकास के नाम पर किसानों की जो जमीनें उचित मुआवजा देने की बात कर सरकार ने लीं उसका मुआवजा भी पीडित किसानों को पूरा नहीं दिया गया। यहां पथरई और लखेरी बांध 2007 में यहां बनाये गये थे जिन किसानों की जमीन और मकान इन बांधों के निर्माण में डूब क्षेत्र में गये उनमें से चार में से तीन गांवों को तो मुआवजा और अनुकंपा राशि दे दी गयी लेकिन एक इमलिया गांव के किसानों को न तो मुआवजा दिया गया और न ही अनुकंपा राशि ही जारी की गयी।
पिछले 11 वर्षों से इस गांव के किसान अपने जायज पैसे की वाट जोह रहे हैं। इस बीच मौसम की मार से खेती भी पूरी तरह चौपट हो गयी है। ऐसे हालात में किसानों के पास अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है।
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