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राष्ट्रीय-अखाड़ा बधाई चार अन्तिम लखनऊ

डां0 गौतम ने बताया कि प्रयाग नगरी का नाम 'प्र' और 'याग' शब्द को मिला कर बना है। 'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः” इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पड़ा। यह आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है। सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था, उसके बाद यहां अनगिनत यज्ञ हुए।
आचार्य ने कहा जहां दो नदियों का संगम होता है उसे प्रयाग कहा जाता है। उत्तराखंड में देवप्रयाग, कर्णप्रयाग और विष्णु प्रयाग हैं। इलाहाबाद में देव भूमि से निकलने वाली दो पवित्र नदियाें गंगा और यमुना का संगम है, इसलिए इसे प्रयागराज कहा जाता है। यहां हर साल माघ मेला लगता है जिसमेंं लाखों श्रद्धालु कल्पवास करने आते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान ब्रह्मा के प्रकृष्ट यज्ञ से प्रयाग नाम प्राप्त प्रयाग को अतिरंजना में विराट पुरुष का मस्तक भी कहा गया है। ब्रहृमपुराण में कहा गया है कि माघ मास में तीर्थराज प्रयाग में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और मनुष्य सर्वथा पवित्र हो जाता है।
गौरतलब है कि मुगल बादशाह अकबर के राज इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता अबुल फज्ल बिन मुबारक ने लिखा है कि 1583 में अकबर ने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को समझते हुए इसे 'अल्लाह का शहर', इल्लाहाबास नाम दे दिया। उन्होंने यहां एक किला का निर्माण कराया, जिसे उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है। जब भारत पर अंग्रेज राज करने लगे तो रोमन लिपी में इसे 'अलाहाबाद' लिखा जाने लगा।
दिनेश भंडारी
वार्ता
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