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राष्ट्रीय कुम्भ-निरंजन पट्टाभिषेक दो अंतिम प्रयागराज

श्री गिरी ने बताया कि सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।
उन्होंने बताया कि अखाड़े में महामंडलेश्वर सम्मान का पद होता है। शाही जुलूस में नागा संत अखाड़े के देवता को सबसे आगे लेकर चलते हैं। आचार्य महामंडलेश्वरब के बाद वरिष्ठता के क्रम पर छत्र चंवर और सुरक्षा के साथ महामंडलेश्वर का रथ चलता है।
श्री गिरी ने कहा कि सभी 13वों अखाडों के प्रतिनिधियों और महामंडलेश्वरों के बीच उनका पट्टाभिषेक किया गया। उनके महामंडलेश्वर बनने से उनके कार्य में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आयेगा।
पट्टाभिषेक के दौरान आचार्य महामण्डलेश्वर और धर्म गुरू ने उनपर पुष्प और जल को कुश से छिडकते हुए परंपरा के अनुसार उनको महामंडलेश्वर की पकड़ी पहनायी। सभी अखाडों के प्रमखों ने उन पर चादर चढाई।
सुश्री निरंजन ज्योति ने कहा, “ मैं सूमझती हूं संत परंपरा में इससे बड़ा कोई सम्मान नही हो सकता। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राजधर्म और धर्म दोनो अलग नहीं है। यह एक सिक्के के दो पहलू हैं। में पहले संत हूं बाद में राजनेता।”
उन्होंने कहा,“ हमारी संस्कृति में कभी जाति परंपरा नहीं रही। योग्यताओं और मर्यादाओं को महत्ता दी गयी। जाति परंपरा को महत्ता दी गयी होती तो अयोध्या से निकलने के बाद श्रीराज जी कभीनिषाद को गले नहीं लगाते। संत परंपरा में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती।”
इस दौरान अनेक संतों ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निमूार्ण को लेकर जयघोष किया और कहा कि श्रीराम अब तंबू से निकलकर अपने भवन में प्रधारेंगे। महामंडलेश्वर से यही उम्मीद करते हैं।
दिनेश त्यागी
वार्ता
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