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कुम्भ-कुम्भ महत्ता तीन कुम्भनगर

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर स्नान करने वाले विभिन्न दिव्यलोक को प्राप्त करते हैं और उनका पुनर्जन्म नहीं होता है। पदम पुराण कहता है कि या यज्ञ भूमि है देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में यदि थोड़ा भी दान किया जाता है तो उसका अनंत फल प्राप्त होता है । प्रयागराज की श्रेष्ठता के संबंध में यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा शेष होता है उसी तरह तीर्थों में प्रयागराज सर्वोत्तम तीर्थ है।
मध्य काल इतिहास में अकबर के दरबारी अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा है कि हिंदू लोग प्रयाग को
तीर्थराज कहते हैं यहीं पर गंगा यमुना और सरस्वती तीनों का संगम है। कुम्भ का महत्व न केवल भारत में वरन विश्व के अनेक देशों में है इस प्रकार कुम्भ को वैश्विक संस्कृति का महापर्व कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि इस दौरान दुनिया के अनेक देशों से लोग आते हैं और हमारी संस्कृति में रचने बसने की कोशिश करते हैं इसलिए कुम्भ का महत्व और बढ़ जाता है कुम्भ पर्व प्रत्येक 12 वर्ष पर आता है प्रत्येक 12 वर्ष पर आने वाले कुम्भ पर्व को अब शासन स्तर से महाकुम्भ और इसके बीच छह वर्ष पर आने वाले पर्व को कुम्भ की संज्ञा दी जा गई है ।
पुराणों में कुम्भ की अनेक कथाएं मिलती है भारतीय जनमानस में तीन कथाओं का विशेष महत्व कुम्भ पर्व के
संदर्भ में पुराणों में तीन अलग-अलग कथाएं मिलती है । प्रथम कथा के अनुसार कश्यप ऋषि का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति और अदिति के साथ हुआ था। अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई तथा दिति दैत्य पैदा हुए एक ही पिता की संतान होने के कारण दोनों ने एक बार संकल्प लिया कि वे समुद्र में छिपी हुई बहुत सी विभूतियों एवं संपत्तियों को प्राप्त कर उसका उपयोग करें ।
इस प्रकार समुद्र मंथन एकमात्र उपाय था समुद्र मंथन उपरांत 14 रत्न प्राप्त हुए जिनमें से एक अमृत कलश भी था इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध छिड़ गया क्योंकि उसे पीकर दोनों अमृत की प्राप्ति करना चाह रहे थे । स्थिति बिगड़ते देख देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को संकेत किया और जयंत अमृत कलश लेकर भाग चला इस पर देशों ने उसका पीछा किया पीछा करने पर देवताओं और दैत्यों पर 12 दिनों तक भयंकर संघर्ष संघर्ष के दौरान अमृत कुम्भ को सुरक्षित रखने में बृहस्पति सूर्य और चंद्रमा ने बड़ी सहायता की और उनके हाथों में जाने से कुम्भ को बचाया ।
सूर्य भगवान ने कुम्भ की फूटने से रक्षा की और चंद्रमा ने अमृत छलक ने नहीं दिया, फिर भी संग्राम के दौरान मची उथल-पुथल से अमृत कुंभ से चार बूंदे छलक की गई यह अलग-अलग चार स्थानों पर गिरी इनमें से एक गंगा तट हरिद्वार में दूसरी त्रिवेणी संगम प्रयागराज में तीसरी क्षिप्रा तट उज्जैन में और चौथी गोदावरी तट नासिक में इस प्रकार इन चारों स्थानों पर अमृत प्राप्ति के कामना से कुम्भ पर्व मनाया जाने लगा ।
सं त्यागी
जारी वार्ता
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