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कुंभ-माघमेला दृश्य चार अंतिम प्रयागराज

चारों ओर धार्मिक अनुष्ठानों के मंत्रोच्चार और हवन में प्रवाहित की जा रही सामग्रियों की भीनी -भीनी खुशबू मेला क्षेत्र के वातावरण को सुगन्धित और पवित्र कर रही है। वहीं मेला क्षेत्र में सक्रिय सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद किसी टेंट के भीतर से बीडी ,सिगरेट और मदिरा की गंध वातावरण को प्रदूषित भी कर रही है। सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि मीलों फैले हजारों की संख्या में तंबुओं के अन्दर घुसकर निगरानी करना संभव नहीं है।
उनके तंबुओं में सिगरेट,शराब की गर्मी धधक रही है। मेले को पिकनिक क्षेत्र मानने वाले लोग सुख-सुविधाओं से लैश होकर यहां पहुंचे हैं। इनके टेंट में टी वी, मोबाइल, लैपटाप आदि सभी प्रकार की सुख-सुविधा की चीजें उपलब्ध हैं। देर रात तक लैपटाप, मोबाइल का आनंद और दिन चढे तक सोना उनकी दिनचर्या में शामिल है।
नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यहां आंख छिपाकर सब कुछ होता है जो गलत है। एक धार्मिक स्थल पर जहां लाखों लोग केवल पुण्य का लाभ लेने के लिए कडाके की ठंड में स्नान कर रहे हैं, भूल चूक हुए कर्मो का प्रायश्चित कर मोक्ष पाने की कामना से पहुंच रहे हैं उस पावन तट पर कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे किसी प्रकार का लज्जापन महसूस हो।
माघ मेला प्रभारी विजय किरण आनंद ने बताया कि कुम्भ मेला मनोरंजन, पिकनिक पार्टी या घूमने फिरने के लिए नहीं बल्कि तपस्या, आस्था और ईश्वर में आस्था से जुडा पवित्र स्थान है। यहां धार्मिक समागम होता रहता है। रात में रात्र जैसा कुछ दर्शता ही नहीं। यहां तो आध्यात्म की ऊर्जा सतत बहती रहती है। उन्होंने बताया कि लोगों को श्रद्धा के इस तपोभूमि की गंभीरता और गरिमा को अच्छी तरह समझना चाहिए।
उन्होंने बताया कि 3200 हैक्टेअर क्षेत्रफल में मेला फैला है। मेला क्षेत्र में प्रशासन ने प्लास्टिक की थैली, थर्माकोल के पत्तल, गुटका आदि पर प्रतिबन्ध लगाया है। यदि कोई भी इसका उपयोग करता पकडा गया तो उसके खिलाफ कडी कार्रवाई की जायेगी। बावजूद, इसके अगर कोई कुछ गलत कर रहा है तो उसका परिणाम उसे खुद ही भुगतना पडेगा क्योकि जहां लाखों कल्पवास करने वाले श्रद्धालु एक समय खाना खाकर तपस्या कर रहे हैं, आध्यात्म की गंगा बह रही हो वहां गलत करने वाले कैसे बच सकते है।
उन्होंने कहा जब तक श्रद्धालुओं में आस्था प्रबल है गंगा न कभी मैली थी ,न है और न मैली होगी। गंगा के प्रति लोगों की आस्था ही है जो देश-विदेश से लोग खिचे चले आते हैं और आस्था की डुबकी लगाते हैं।
दिनेश प्रदीप
रवीन्द्र
वार्ता
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