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महिला आरक्षण में प्रदेश का मूल निवासी होने का क्लाज असंवैधानिक

महिला आरक्षण में प्रदेश का मूल निवासी होने का क्लाज असंवैधानिक

प्रयागराज, 18 जनवरी(वार्ता) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महिलाओं के आरक्षण मामले में प्रदेश का मूल निवासी होना अनिवार्य करने के नौ जनवरी 2007 के शासनादेश के क्लाज-4 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।

न्यायालय ने कहा है कि यह जन्म स्थान के आधार पर विभेद करने पर रोक लगाने वाले संविधान के अनुच्छेद 16 1⁄431⁄2 व 16 1⁄431⁄2 के विपरीत है।

अदालत ने ने 2015 की अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की 1377 जूनियर इंजीनियरों की भर्ती की पुनरीक्षित चयन सूची 24 अगस्त 2018 को वैध करार दिया है और कहा है कि इस सूची से बाहर पूर्व में चयनित 107 अभ्यर्थियों में से जिन्हें नियुक्ति दे दी गयी थी, उन्हें सेवा से बाहर न किया जाए। भर्ती पूरी करने के बाद इन्हें वरिष्ठता क्रम में नीचे रखते हुए भविष्य में खाली पदोें पर समायोजित किया जाए।

न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने उत्तराखण्ड की वर्षा सैनी और अन्य कई याचिकाओं को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है।

न्यायालय ने कहा है कि पुनरीक्षित चयन सूची से बाहर हुए अभ्यर्थियों की कोई गलती नहीं है। इसलिए उन्हें सेवा से नहीं हटाया जायेगा और पुनरीक्षित चयन सूची के आधार पर भर्ती प्रक्रिया नियमानुसार पूरी की जाए। न्यायालय के इस फैसले से प्रदेश के बाहर दूसरे प्रदेशों की चयनित महिला अभ्यर्थियों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। याचिका पर

वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एन.त्रिपाठी, ए.के.मिश्र, राघवेन्द्र मिश्र आदि वकीलों ने बहस की।

गौरतलब है कि 2015 में 1377 जूनियर इंजीनियरों की भर्ती की गयी जिसमें महिला अभ्यर्थियों को 20 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया जाना है। महिलाओं के 151 पदों पर केवल 75 का ही चयन किया गया जबकि 79 पद खाली रह गए। चयन में क्षैतिज आरक्षण के नियम का पालन न करने की शिकायत की गयी। 25 मई 2016 को घोषित परिणाम पर

पुनर्विचार करते हुए पुनरीक्षित चयन सूची 28 अप्रैल 2018 को जारी की गयी। इसमें पहले चयनित 107 बाहर हो गए जिसमंे से अधिकांश नियुक्त हो चुके थे। उन्होंने चुनौती दी। महिला आरक्षण में प्रदेश के मूल निवासी न होने के आधार पर चयनित याची को नियुक्ति देने से इंकार कर दिया गया इसे भी चुनौती दी गयी। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि अनुच्छेद 16 1⁄421⁄2 व 16 1⁄431⁄2 में जन्म स्थान के आधार पर विभेद करने की मनाही है। राज्य सरकार के शासनादेश से महिला आरक्षण में प्रदेश का मूल निवासी होना अनिवार्य किया जाना संविधान के विपरीत है।

राज्य सरकार को संविधान के विपरीत नियम बनाने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने महिला आरक्षण में प्रदेश का मूल निवासी होने की अनिवार्यता को असंवैधानिक करार दिया है। आयोग की तरफ से अधिवक्ता के.एस.कुशवाहा ने बहस की।

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