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लोकरूचि रामानन्द जयन्ती दो अन्तिम मथुरा

ब्रज की विभूति शंकरलाल चतुर्वेदी ने बताया कि ’’रामानन्दः स्वयं रामःप्रातुर्भूतो महीतले’’ अर्थात रामानन्द जी स्वयं भगवान राम थे। उनका जन्म आज से 715 वर्ष पहले प्रयागराज में हुआ था। इन्होने धर्म एवं भक्ति का प्रचार किया था। इन्होंने 12 शिष्यों को भी धर्म के प्रचार में लगाया था।
उन्होंने बताया कि उस समय यवनों का बडा अत्याचार था। बगदाद से आया तैमूरलंग हिंदुओं पर अत्याचार कर रहा था। रामानन्दाचार्य ने बड़े शांतिपूर्ण तरीके से उसको अपनी नीति को परिवर्तित करने की प्रेरणा दी। उनके पास एक ऐसा दाक्षिणावर्ती शंख था जिसको बजाकर उन्होंने मुसलमानों की नमाज बंद कर दी। तैमूरलंग घबड़ा गया और कबीरदास के पास गया। कबीरदास ने कहा कि उन्होंने पानी में आग लगाई है।
रामानन्दाचार्य तो बहुत शांति प्रिय हैं उनके पास जाओ और उनसे नमाज खोलने का अनुरोध करो। इसके बाद वह स्वामी जी के पास आया और अपनी भूल स्वीकार की तो रामानन्दाचार्य ने 12 शर्तों पर मुसलमानों की नमाज खोल दी। उन 12 शर्तों में जजिया कर की समाप्ति, हिंदुओं की लड़कियों को उठाकर न ले जाना, दूल्हा मस्जिद के सामने से घोड़े पर निकलेगा तो उसे रोका नहीं जाएगा आदि प्रमुख थीं। उनका कहना था जब कोई भक्त पूर्ण अन्तर्मन से भगवत आराधना में लीन हो जाता है और चतुर्दिक अपने आराध्य की कृपा का अनुभव करने लगता है तो भगवान स्वयं प्रकट होकर या परोक्ष रूप में अपनी शक्ति का कुछ भाग उसे इसलिए दे देते हैं कि लोगों के सामने यह आदर्श उपस्थित हो कि यदि भगवान को पाना चाहते हैं तो पूर्ण समर्पण जरूरी है।
ब्रज की विभूति शंकरलाल चतुर्वेदी ने बताया कि रामानन्द आश्रम में मनाई जा रही इस जयन्ती में चतुर्वेदी रामलीला महासभा द्वारा रामलीला की जीवन्त प्रस्तुति से जहां वातावरण राममय हो रहा है वहीं राम केवट संवाद, सीताहरण, सीता के वियोग में राम का पशु पक्षियों, भौरों से सीता के बारे में पूछना जैसे प्रसंगों के भावमय प्रस्तुतीकरण से दर्शकों के नेत्र सजल हो रहे हैं। संगीतमय श्रीरामचरित मानस 108 नवान्ह पाठ से तो ऐसा लगता है कि भक्ति कार्यक्रमस्थल पर स्वयं नृत्य कर रही है।
उन्होेंने बताया कि नित्य आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में कान्हा की लीलाओं का प्रस्तुतीकरण, श्रीकृष्ण जन्म पर भोलेनाथ का श्रीकृष्ण से मिलने के लिए जाना और मां यशोदा द्वारा उन्हें श्रीकृष्ण से मिलाने से इंकार करना, जैसे प्रसंग द्वापर का सा वातावरण प्रस्तुत कर रहे हैं। चूंकि यह कार्यक्रम गोवर्धन में दानघाटी मंदिर के निकट ही बड़ी परिक्रमा मार्ग पर हो रहे हैं इसलिए देश के कोने कोने से आने वाले तीर्थयात्री भी इनका आनन्द ले रहे हैं।
सं भंडारी
वार्ता
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