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लोकरूचि -ट्रेन बेडियां दो अंतिम इटावा

इटावा के भर्थना स्टेशन पर रुकने वाली सवारी गाड़ी हो या फिर 120 बोगियों की लगभग आधा किलोमीटर लंबी मालगाड़ी । सभी में स्टेशन अधीक्षक या स्टेशन मास्टर की निगरानी में पोर्टर किसी एक पहिए को जंजीर से पटरियों से बांधकर ताला लगाता है। यही नहीं उस पहिए के दोनों ओर दो लकड़ी की गिट्टक भी लगाते हैं। इस काम की बाकायादा रेलवे के दस्तावेजो मे इंद्राज भी किया जाता है और स्टेशन मास्टर कक्ष में रखे स्टेबल रजिस्टर में इसे दर्ज किया जाता है ।
जब ट्रेन रवाना होने को होती है तो लोको पायलट व गार्ड को ट्रेन ताला खोलकर सौंप दी जाती है । सरायभूपत रेलवे के स्टेशन पर इसके लिए पोर्टर रवि कुमा एवं अशोक कुमार की ड्यूटी लगती है । पोर्टरों का कहना है कि उन्हें स्टेशन अधीक्षक का आदेश मिला है । वर्षों से पहिए को एक जंजीर से बांधकर ताला लगाते आ रहे हैं । जाने के समय नियम से लिखत पढ़त पूरी कर ताला खोलकर ट्रेन को रवाना करते हैं।
जब देश के लिए रेल नई नई बात थी तभी से स्टेशन पर लम्बे समय के लिए ठहरने वाली ट्रेनों को जंजीर से बांधने का नियम बना हुआ है । रेल अधिकारियों के अनुसार शुरूआती दिनों में ट्रेन मात्र चार से छह बोगियों की होती थी । ऐसे आंधी-तूफान या भूकम्प की स्थिति में ट्रेन के अपने आप लुढकने का खतरा बना रहता था । जो स्टेशन ढलान पर थे वहां ट्रेन के लुढकने का सबसे ज्यादा खतरा था जिसपर इस नियम का कड़ाई से पालन कराया जाता था और ट्रेन के पहियों में दोनों और लकड़ी की गिट्टी लगाकर जंजीर से बांध कर ताला जड़ दिया जाता था ।
सं सोनिया
वार्ता
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