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कुंभ-कल्पवासी वापसी तीन अंतिम कुंभ नगर

डा गौतम ने बताया कि कुंभ हमारी सभ्यता का संगम है, आत्म जागृति का प्रतीक है, मानवता का अनंत प्रवाह है, प्रकृति और मानवता का संगम, ऊर्जा का स्रोत। मानव जाति को पाप-पुण्य का प्रकाया-अंधकार का एहसास कराता है।
प्रयागराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। तीर्थराज प्रयाग में संगम के निकट हिन्दू माघ महीने में कल्पवास करते हैं। पौष पूर्णिमा से कल्पवास आरंभ होता है और माघी पूर्णिमा के साथ संपन्न होता है। पिछले एक माह से संगम किनारे घर गृहस्थी से दूर रहकर जप-तप कर रहे लोगों का कल्पवास आज पूरा हो गया और कल्पवासी अपने-अपने घरों को लौटना शुरू कर दिया।
कल्पवास के लिए सास-ससुर की सेवा कर रही चन्देलनपुरा निवासी मीनाक्षी द्विवेदी ने बताया कि इस दौरान जो सामान उनके पास बचा था उसका अधिकांश भाग वह शिविर के पंडा को दान देकर अगले साल फिर से आने का संकल्प लेकर घर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पिछले एक माह से संगम की रेती पर कल्पवास कर रहे सैकड़ों परिवार आज माघी पूर्णिमा स्नान के बाद फिर से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करेंगे।
उन्होंने बताया कि एक माह के दौरान कठिन तपस्या एवं जप-तप के साथ जीवनयापन करने वाले कल्पवासी विभिन्न कठिन परिस्थितियों में संगम तट पर रहकर अपना जीवनयापन करने के साथ ही पूरा समय पूजा-पाठ करने में ही बिताते है। इस एक माह के दौरान उनको घर परिवार के साथ ही गृहस्थ जीवन के बारे में कोई चिंता नहीं रहती है। शिविर में कुछ परिवार ऐसे है जो कई कुंभ से कल्पवास करते आ रहे हैं।
सर्दी-गर्मी-बरसात के साथ ही हर मौसम में मिलने वाली कठिनाइयों को झेलते हुए यह कल्पवासी पूरा एक माह संगम तट पर रहकर जीवनयापन करने के साथ ही पूजा-पाठ और सादा जीवन जीते है। इस दौरान इनका पूरा समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत होता है।
आज माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद कुंभ में बसे कल्पवासी अपने-अपने घरों को जाने की तैयारी में जुट गए और कई तो ऐसे है जिनको लेने के लिए उनके घर वाले सुबह से ही मेला क्षेत्र में पहुंच गए थे और साथ ले जाने का इंतजार कर रहे थे।
दिनेश प्रदीप
वार्ता
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