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लाेकरूचि नवरात्रि बाराही देवी दो अन्तिम गोंडा

वाराह पुराण के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का पूरे पृथ्‍वी पर आधिपत्‍य हो गया था। देवताओं, साधू-सन्‍तों और ऋषि मुनियों पर अत्‍याचार बढ़ गया तो हिरण्याक्ष का वध करने के लिये भगवान विष्णु को वाराह का रूप धारण करना पड़ा था। भगवान विष्णु ने जब पाताल लोक पंहुचने के लिये शक्ति की आराधना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां भगवती बाराही देवी के रूप में प्रकट हुईं। इस मन्दिर में स्थित सुरंग से भगवान वाराह ने पाताल लोक जाकर हिरण्याक्ष का वध किया था। तभी से यह मन्दिर अस्तित्व में आया। इसे कुछ लोग बाराही देवी और कुछ लोग उत्‍तरी भवानी के नाम से जानने लगे।
मंदिर के चारों तरफ फैली वट वृक्ष की शाखायें, इस मन्दिर के अति प्राचीन होने का प्रमाण है। मंदिर प्रांगण मे नव दुर्गाओं , सतियों व अन्य देवी देवताओ के मंदिरो की पूजा अर्चना व हवन में महिला व पुरूष श्रद्धालु लीन हो जाते है। नवरात्रि के मध्य मंदिर परिसर में निरंतर भागवत कथा व विशाल भंडारा चलता है। मंदिर के प्रांगण में दूर दराज से आये देवीभक्त माँ को पुष्प , लौंग , चुनरी , नारियल ,आम पल्लौ , मेवा , मिष्ठान , कमल व अन्य श्रृंगार की सामग्रियों को चढ़ाकर माँ की आराधना में जुटतेे है। इसके अलावा वैदिक रीति से मुंडन संस्कार , यज्ञोपवीत , नामकरण संस्कार , सगाई की रस्म , शगुन , परिणय संस्कार व अन्य रस्में अदा करते है।
पुलिस अधीक्षक आर पी सिंह के अनुसार , मेले में नागरिक पुलिस , पीएसी , होमगार्ड , महिला शाखा व अन्य सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये है।
जिले के काली भवानी , खैरा भवानी , फुलवारी सम्मय मंदिर व अन्य देवीमंदिरो में प्रथम नवरात्रि के दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
सं भंडारी
वार्ता
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