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लोकरूचि चंबल घड़ियाल दाे अंतिम लखनऊ

कसाऔ मे चंबल नदी के किनारे एक ऐसा मनोरम दश्य देखने को मिला हुआ है जहॉ पर एक विशालकाय घाडियाल अपनी पीठ पर सैकडो की तादात मे अपने मासूम बच्चो को बैठाये हुए है । उसे देखने के बाद इंसानी बच्चो के दुलार की याद आ जाती है । यह एक ऐसा घडियाल है जो बडे आराम से अपनी पीठ पर बच्चो को बैठाये रहता है जब कोई हरकत उसको सुनाई देती है तो वह अपने बच्चो को पीठ से उतारता है अन्यथा सभी बच्चे उसकी पीठ पर बैठ कर ही आंनद लेते रहते है । सुबह शाम यह दृश्य गांव वालो के लिए बडे ही आंनद का विषय इस समय बना हुआ है ।
चंबल मे साल 2007 से फरवरी 2008 तक जिस तेजी के साथ किसी अनजान बीमारी के कारण एक के बाद एक करके करीब सवा अधिक तादात में घडियालों की मौत हुई थी उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था । ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडियाल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं ।
घडियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले। घडियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की वजह से घडियालों की मौत को कारण माना । वहीं दबी जुबां से घडियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ संजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडियालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ-दस दिन पूर्व तक रहता है। घडियालों के प्रजनन का यह दौर ही घडियालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडियालों के बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं। वे कहते हैं कि महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।
दुनियाभर में लुप्तप्राय स्थिति में पहुंचे घड़ियालों का चंबल नदी में संरक्षण हो रहा है। पहले घड़ियालों के अंडों को हैचिंग के लिए कुकरैल प्रजनन केंद्र लखनऊ ले जाना पड़ता था । अब 10 साल से चंबल नदी में प्राकृतिक (अंडे सेने की प्रक्रिया) हैचिंग हो रही है। 65 से 70 दिन का हैचिंग का समय शुरू होने पर वन विभाग ने घोसलों पर लगी जाली हटा दी है । बता दें कि नेस्टिंग के टाइम पर वन विभाग ने जीपीएस से लोकेशन ट्रेस कर जाली लगाई थी ताकि वन्यजीव इनके अंडों को नष्ट न कर सकें ।
सं प्रदीप
वार्ता
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