राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Aug 13 2019 6:54PM फीचर लालसेना अंग्रेज तीन इटावाआजादी की लड़ाई में अपनी जुझारू प्रवृत्ति और हौसले के बूते अंग्रेजी हुकूमत का बखिया उधड़ने वाले अर्जुन सिंह भदौरिया को स्वतंत्रता सेनानियों ने कमांडर की उपाधि से नवाजा। कमांडर ने इसी जज्बे से आजाद भारत में आपातकाल का जमकर विरोध किया। तमाम यातनाओं के बावजूद उन्होने हार नहीं मानी जिससे प्रभावित क्षेत्र की जनता ने सांसद चुन कर उन्हे सर आंखों पर बैठाया। 10 मई 1910 को बसरेहर के लोहिया गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौेरिया ने 1942 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। 1942 में उन्होंने सशस्त्र लालसेना का गठन किया । बिना किसी खून खराबे के अंग्रेजों को नाको चने चबबा दिये। इसी के बाद उन्हें कमांडर कहा जाने लगा । 1957,1962 और 1977 में इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए । कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया संसद में भी उनके बोलने का अंदाज बिल्कुल जुदा रहा। 1959 में रक्षा बजट पर सरकार के खिलाफ बोलने पर उन्हें संसद से बाहर उठाकर फेंक दिया गया । लोहिया ने उस वक्त उनका समर्थन किया । पूरे जीवनकाल में लोगों की आवाज उठाने के कारण 52 बार जेल भेजे गए । आपातकाल में उनकी पत्नी तत्कालीन राज्यसभा सदस्य श्रीमती सरला भदौरिया और पुत्र सुधींद्र भदौरिया अलग-अलग जेलो में रहे । पुलिस के खिलाफ इटावा के बकेवर कस्बे में 1970 के दशक में आंदोलन चलाया था । लोग उसे आज भी बकेवर कांड के नाम से जानते हैं ।सं प्रदीपजारी वार्ता