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उत्तर प्रदेश डाकू देशप्रेम तीन अन्तिम इटावा

अग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिये देश के हर वासिंदे ने अपने अपने तरीके से अपनी सामर्थ्य के अनुसार लडाई लडी है । हर किसी के जुनून ने देश को आजादी दिलाई है । ऐसे में यदि कोई अपराधी देश की आजादी के लिये लडाई लडे तो वाकई हैरत की बात ही मानी जायेगी वैसे तो चंबल के डाकुओ की छवि काफी खूखांर अपराधी के तौर पर हर किसी को पता है लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते है कि चंबल के डाकुओ ने कभी आजादी की लडाई मे भी खासी हिस्सेदारी करके अपना बलिदान दिया है ।
स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914-15 मे क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी मे क्रान्तिकारियो के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन में हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आहृवान किया गया जो देश हित में काम करने का इच्छुक हो इसी दरम्यान सहयोगियो के तौर चंबल के कई बागियो ने अपनी इच्छा आजादी की लडाई मे सहयोग करने के लिये जताई।
ब्रह्मचारी नामक चंबल के खूखांर डाकू के मन में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने एक सैकड़ा से अधिक साथियों के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रह्मचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुडने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई तथा ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरूद्व प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली। ब्रहमचारी अपने बागी साथियो के साथ चंबल के ग्वालियर मे डाका डालता था और चंबल यमुना मे बीहडो मे शरण लिया करता था । ब्रहमचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे।
इसी दौरान चंबल संभाग के ग्वालियर मे एक किले को लूटने की योजना ब्रहमचारी और उसके साथियो ने बनाई लेकिन योजना को अमली जामा पहनाये जाने से पहले ही अग्रेंजो को इस योजना का पता चल गया ऐसे मे अग्रेजो ने ब्रहमचारी के खेमे मे अपना एक मुखबिर घुसेड दिया और पडाव मे खाना बनाने के दौरान ही इस मुखबिर ने पूरे खाने मे जहरीला पदार्थ डाल दिया। इस मुखबिर की करतूत का ब्रहमचारी ने पता लगा कर मुखबिर को मारा डाला लेकिन तब तक अग्रेजो ने ब्रहमचारी के पडाव पर हमला कर दिया जिसमे दोनो ओर से काफी गोलियो का इस्तेमाल हुआ । ब्रहमचारी समेत उनके दल के करीब 35 बागी शहीद हो गये ।
कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार का कहना है कि चंबल घाटी का आजादी की लडाई में खासा योगदान रहा है । आजादी के दौरान कई ऐसे गांव रहे है जिन गांव मे अग्रेंज प्रवेश करने को तरसते रहे है और ऐसे भी कई गांव रहे है जहां पर अंग्रेज अफसरो को मौत के घाट तक उतार दिया है । चंबल इलाके का कांयछी एक ऐसा गांव माना गया है जॅहा पर अग्रेंज अफसरो आजादी के दीवानो को खोजने के लिये गांव को ही नही खोज पाये । इस घाटी के बंसरी गांव के तो दर्जनो शहीद हुये है ।
आज भले ही चंबल घाटी को कुख्यात डाकुओ की शरणस्थली के रूप मे जाना जा रहा है लेकिन देश की आजादी के बाद चंबल मे पनपे बहुतेरे डकैतो ने चंबल के बागियो की देशप्रेमी छवि को पूरी तरह से मिटा करके रखा दिया है ।
सं भंडारी
वार्ता
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