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रावण ने दिया था राम को ‘लंका विजय’ का आशीष

प्रयागराज 08 अक्टूबर (वार्ता) लंकाधिपति रावण ने अयोध्यापति श्रीराम का धुर विरोधी होने के बावजूद बाह्मण आचार्य पद का सम्मान रखते हुए “ लंका विजय यज्ञ” का आर्शीवाद दिया था।
जब श्रीराम वानरों की सेना लेकर लंका पर चढाई करने के लिए रामेश्वरम समुद्र तट पर पहुंचे। “लंका विजय यज्ञ” के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावाने भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की तब विजय यज्ञ पूर्ण कराने के लिए जामवंत को रावण के पास आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया।
स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा था “मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ । मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ। उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है। ” रावण ने सविनय कहा, “ आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं। आप आसन ग्रहण करें।”
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की 'इरामावतारम्' रामायण मे इस कथा का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा कम्ब रामायण और बंगाल में प्रचलित कृत्तिवास रामायण में भी इसका वर्णन मिलता है। कम्ब रामायण तमिल साहित्य की सर्वोत्कृष्ट कृति एवं एक बृहत् ग्रंथ है।
उन्होने तमिल भाषा में लिखी रामाण के आधार पर कहा कि जामवन्त ने आसन ग्रहण कर रावण से कहा कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं । इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचर्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है। मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ। प्रणाम प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया कि क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है।
दिनेश प्रदीप
जारी वार्ता
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