राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Oct 22 2019 1:55PM लोकरूचि-दीवाली कुम्हार दो प्रयागराजरधई का कहना है कि समय के साथ चिकनी मिट्टी के श्रोत एवं जगहों के समाप्त होने के साथ कुम्हारों को चिकनी मिट्टी मोल लेनी पड़ रही है। 15 साल पहले जहां 10 पैसे के दीपक में कुम्हार को अच्छी बचत हो जाती थी, वहीं आज एक दीपक दो से पांच रुपए में बेचने पर भी कुम्हार रत्ती भर मुनाफा नहीं कमा पाता है। कुछ कुम्हारों को अच्छे आर्डर मिलने से सभी की दीवाली अच्छी नहीं मनती। पहले की तरह सभी कुम्हारों का कारोबार अच्छा होने से अच्छा माना जाता है। हरखुराम ने कहा कि दीपावली में रंग-बिरंगे चायनीज झालरों के बीच रोशनी के इस पर्व पर लोग मिट्टी के दीपक खरीदना चाहिए ताकि कुम्हारों की दीपावली और घर भी रोशन हो सके। पहले करवाचौथ एवं बाद में मिट्टी के दीपक बनाने का काम बड़े पैमाने पर चलता था। कुम्हारों को इस सीजन में पल भर के लिए बैठने की फुर्सत नहीं मिलती थी, लेकिन बीते कुछ वर्षो में सस्ती चायनीज झालरों ने मिट्टी के दीपकों की जगह ले ली। इसके चलते लोग महज शगुन और पूजन के लिए मिट्टी के दीपक की खरीद करने लगे। तेलियरगंज निवासी कल्लू ने कहा कि दीवाली में पारंपरिक तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दीए अब सिमट कर शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं। पहले कुम्हारों को दीवाली जैसे त्योहारों का बेसब्री से इन्तजार रहता था। दीयों की मांग पूरी करने के लिए तैयारी महीनों पहले से तैयारी शुरू कर देते थे। लगातार बढ़ती मंहगाई और लोगों की बदली रुचि से अब तस्वीर बदल गई है। परम्परागत दियों की जगह अब आधुनिक लड़ियों ने भले ले ली है, लेकिन असली दीवाली तो मिट्टी के दियो से मनाई जाती है। दिनेश प्रदीपजारी वार्ता