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झांसी में मनायी गयी झलकारीबाई की 189वीं जयंती

झांसी 22 नवंबर (वार्ता) महारानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेली और दुर्गा दल की सेनानायक झलकारीबाई की 189 जयंती पर उनकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश की झांसी में लोगों ने उनकी अद्वितीय वीरता को नमन किया।
यहां किला रोड स्थित तिराहे पर बनी महिला शौर्य की अमिट गाथा लिखने वाली झलकारी बाई की प्रतिमा पर सुबह से ही पुष्पांजलि देने और माल्यार्पण करने वालों का तांता लगा रहा। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ साथ कोरी समाज के लोग भी अपने समाज में पैदा हुई ऐसी वीरांगना को नमन करने उनकी प्रतिमा पर पहुंचे।
इस अवसर पर कोरी समाज ने एक मिनी मैराथन का भी आयोजन किया जिसमें विभिन्न स्कूलों के बच्चों और लोगों ने हिस्सा लिया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ता झलकारी बाई की प्रतिमा पर पुष्पांजलि देने पहुंचे इस अवसर पर पूर्व मेयर भाजपा की किरण राजू बुकसेलर ने कहा कि हम आज उस वीरांगना की जयंती पर उन्हें याद कर रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ महारानी लक्ष्मीबाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मोर्चा लिया और नारी शौर्य की एक अमिट गाथा लिखी। ऐसे लोग हमेशा समाज के लिए पथ प्रदर्शक का काम करते हैं जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। हम सभी को ऐसी महान हस्तियों ने देशप्रेम का सबक लेना चाहिए।
समाजवादी पार्टी जिला अध्यक्ष छत्रपाल सिंह यादव के नेतृत्व में सपाइयों ने भी झलकारी बाई की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन पुष्प अर्पित किया। इस अवसर पर पूर्व एमएलसी श्याम सुंदर सिंह यादव ने कहा कि झलकारी बाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की वे रानी की हमशक्ल होने के कारण शत्रुओं को धोखा देती हुई युद्ध करती थी।
झलकारी बाई का जन्म बुन्देलखंड के झांसी जिले के एक छोटे से गांव भोजला में 22 नवम्बर 1830 को कोली परिवार में हुआ था। इनके पिता मूलचंद घर में ही कपड़ा बुनाई का काम करते थे। पिछडे परिवार में जन्म लेने वाली झलकारी बाई को शिक्षा से वंचित रहना पड़ा। इनकी बहादुरी उस समय सामने आई जब एक दिन झलकारी बाई घर में इस्तेमाल करने के लिए जंगल लकड़ी काटने गई थी। वहां एक बाघ ने झलकारी बाई पर हमला कर दिया पर वह डरी नहीं और बाघ से भिड़ गई। उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से बाघ को मार गिराया जिसकी चर्चा झांसी के राज दरबार में पहुंची।
झलकारी बाई का विवाह कम उम्र के युवा एक सैनिक पूरन कोरी से हुआ था। विवाह के बाद जब झलकारी बाई महारानी से आर्शीवाद के लिए आयीं तो उसका शस्त्राभ्यास रानी ने उसे तब रानी ने दुर्गा दल नामक महिला सेना का प्रमुख बना दिया। महारानी लक्ष्मीबाई की सबसे विश्वसनीय साथी वीरांगना झलकारी बाई हमेशा परछाई बनकर उनके साथ रहीं। उनके जीवन के अंतिम युद्ध ग्वालियर के मैदान में रानी की रक्षा में अप्रैल 1858 को वीरांगना झलकारी बाई ने रणभूमि में वीरगति को प्राप्त की।
सोनिया
वार्ता
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