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दारुल उलूम के बाद जमीयत भी अयोध्या फैसले पर पुनर्विचार याचिका के पक्ष में नहीं

सहारनपुर, 22 नवम्बर (वार्ता) मौलाना महमूद मदनी की अगुवाई वाली जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अयोध्या में
राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के पक्ष में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल
किए जाने का समर्थन नहीं किया है।
जमीयत के शीर्ष नेताओं के बैठक के बाद देवबंद में आज संवाददाताओं को बताया कि भले ही यह फैसला किसी
के गले नहीं उतरता है, लेकिन हमारा संगठन पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने का समर्थक नहीं है। हम इसे
फिजूल की बात मानते हैं। मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड की बैठक में भी मौलाना महमूद मदनी ने अपना यही रूख अपनाया था।
दारूल उलूम देवबदं भी इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने के पक्ष में नहीं है। मोहत्मिम अबुल कासिम नौमानी का कहना था कि दारूल उलूम इस बावत अपना कोई निर्णय नहीं लेगा। इसके उलट जमीयत उलमा-ए-हिंद के दूसरे धड़े के अध्यक्ष और दारूल उलूम देवबंद हदीस के उस्ताद मौलाना अरशद मदनी का रूख पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने के पक्ष में है। अरशद मदनी का यह मानना है कि पुनर्विचार याचिका सौफीदी नामंजूर हो जाएगी, लेकिन मुस्लिमों के कुछ संगठन और लोग पुनर्विचार याचिका दाखिल करना चाहते हैं तो वह की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि दारूल उलूम देवबंद और जमीयत उलमा ए हिंद राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हैं और उनकी सोच, विचारधारा बहुत उदार है। मौलाना अरशद मदनी हाल के कुछ दिनों में संघ प्रमुख मोहन भागवत से राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर दो बार मुलाकात कर चुके हैं। महमूद मदनी ने फैसले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल
ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद बुलाई गई बैठक में शामिल हुए थे। मौलाना महमूद मदनी अरशद मदनी के सगे भतीजे हैं।
सं त्यागी
वार्ता
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