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मूंगफली खरीद के लिए बने क्रय केंद्र किसानों के साथ मजाक:बिदुआ

झांसी 13 जनवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के झांसी में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मूंगफली खरीद कर उन्हें व्यापारियों के चंगुल से बचाकर सीधे लाभ पहुंचाने के लक्ष्य के साथ शुरू किये गये क्रय केंद्रों को किसान नेता और किसान रक्षा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरीशंकर बिदुआ ने एक बड़ा मजाक बताया है। यहां अपर जिलाधिकारी श्रीराम अक्षयवर चौहान ने जिले में किसानों से एमएसपी पर मूंगफली खरीद के लिए बड़ागांव ब्लॉक के भोजला गांव और चिरगांव के रामनगर में क्रय केंद्रो के प्रभारी को सोमवार को कड़े दिशा निर्देश जारी किये । उन्होंने कहा कि खसरा सत्यापन के बाद लेखपाल किसानों को टोकन देकर फसल खरीदें ताकि किसानों को क्रय केंद्रो पर अधिक समय इंतजार नही करना पड़े और उनका किसी तरह से उत्पीड़न न हो। इस दौरान केंद्रों पर किसानों के लिए पीने के पानी और बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के भी आदेश दिये गये । केंद्रों पर लगाये गये कांटों के सुचारू काम करने और समय समय पर निरीक्षण का भी निर्देश दिया गया। सरकार और प्रशासन द्वारा किसानों को खरीद का उचित मूल्य दिलाने के लिए की जा रही इस गंभीर कवायद पर जब यहां के किसानों से बात की गयी तभी हकीकत साफ हुई ।
इस पूरी कवायद पर किसान नेता गौरीशंकर ने यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा “ जनवरी के मध्य में मूंगफली की खरीद के लिए क्रय केंद्र शुरू किये जाने से बड़ा मजाक किसानों के साथ शायद ही और कोई हो । इस तरह के मजाक के हम अब पूरी तरह से आदी हो चुके हैं । मूंगफली की फसल जुलाई में तैयार हो जाती है और सितम्बर तक किसानों के घर पहुंच जाती है। अब जब किसानों की लगभग पूरी फसल व्यापारियों द्वारा औने पौने दाम में खरीद ली गयी है तब सरकार मूंगफली की खरीद के लिए क्रय केंद्र शुरू कर रही है। इससे बड़ा मजाक हमारे साथ और क्या हो सकता है।
उन्होंने कहा कि किसान की आय का जरिया उसकी फसल ही होती है फसल तैयार होने के बाद हम अपने घर परिवार के पूरे खर्च के लिए उस फसल से होने वाली आय पर निर्भर करते हैं । ऐसे में कोई कितने दिनों तक सरकारी खरीद केंद्रों के खुलने और एमएसपी पर फसल बेचने के लिए इंतजार कर सकता है। फसल तैयार होने के तुरंत बाद शासन प्रशासन कभी क्रय केंद्रों पर खरीद शुरू नहीं करता बल्कि तीन से चार माह बीत जाने के बाद यह नाटक शुरू होता है। तब तक बड़ी संख्या में किसान फसल व्यापारियों को बेच चुके होते हैं क्योंकि अपने पारिवारिक खर्च को पूरा करने के लिए कोई कितने दिन पैसों की बांट जोह सकता है। पैसों की मजबूरी जब किसान को व्यापारियों के हाथ उल्टी सीधी कीमत पर फसल बेचनी पड़ती है उस समय तक सरकार को किसान की फसल खरीदने की सुध नहीं आती और जब वह ऐसा कर लेता है तो उसके बाद क्रय केंद्रों को शुरू किया जाता है यह किसानों के साथ एक बड़ा मजाक और दिखावा नहीं ताे और क्या है।
सोनिया
जारी वार्ता
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