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दिव्यांग ने नेत्रहीनता को बनायी ताकत

शाहजहाँपुर 19 जनवरी (वार्ता) ‘मंजिले उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।’ किसी शायर की यह चंद लाइने शाहजहांपुर के दिव्यांग पर बिल्कुल सटीक बैठती है जिसने नेत्रहीनता को अपनी ताकत बना लिया।
जिलाधिकारी कार्यालय में कुर्सी बुनकर का काम करने वाले विनोद का हुनर देखकर हर कोई उसके जज्बे को सलाम कर रहा है। इनकी इस कला को देखकर कोई इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि यह दोनों आंखों से दुनिया को देख नहीं सकता। उसके कुशलता से चलते हाथों को देखकर ऐसा लगता है जैसे आंखों की रोशनी हाथों में उतर आई है। यह दूसरे कारीगरो के मुकाबले कहीं ज्यादा सुंदर कुर्सी बुन सकते हैं।
सीतापुर जिले के निवासी विनोद की हर्ष फायरिंग के दौरान बंदूक के छर्रे रखने से आंखों की रोशनी चली गई थी। उस वक्त उनकी उम्र तकरीबन 15 साल रही थी। विनोद को एक वक्त ऐसा लगा था जैसे उनके जीने का मकसद ही खत्म हो गया। लेकिन बाद उन्होंने फैसला किया कि वह अपनी इस कमजोरी को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाएंगे।
विनोद ने लखनऊ में दृष्टिहीन शिल्पविद्यालय में एडमिशन लेकर वहां कुर्सी की बुनाई का काम सीखा। इसके अलावा उसने बांसुरी, हारमोनियम और तबला बजाना भी सीखा। 1999 में उन्हें दिव्यांग कोटे में कुर्सी बुनकर की सरकारी नौकरी मिल गई । विनोद उन सभी दिव्यांगों से अपना हौसला मजबूत रखने की अपील कर रहे हैं जो अपनी दिव्यांगता को कमजोर समझते हैं।
सं प्रदीप
वार्ता
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