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फीचर -कल्पवास श्रद्धालु तीन अंतिम प्रयागराज

मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत के दौरान मारे गये अपने रिश्तेदारों को सद्गति दिलाने के लिए मार्कण्डेय ऋषि के सुझाव पर कल्पवास किया था। उन्होने बताया कि माघ मास में प्रयाग में कल्पवास के दौरान सुबह, दोपहर और शाम को स्नान करने से जो फल मिलता है वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता।
संगम तट पर पिछले 20 साल से कल्पवास कर रहे सतना से आए रामनिहोर पाण्डे ने बताया कि माघ महीने ने संगम तट पर एक माह का कल्पवास का आध्यात्मिक रूप से बड़ा महत्व है। इसलिए हरसाल बड़ीदसंख्या में श्रद्धालु यहां कर एक महीने की तपस्या करते हैं। आयुर्वेद, यूनानी ओर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कल्पवास का खास महत्व है। कल्पवास के दौरान नियम संयम और एक समय स्वल्पाहार और भूमि पर शयन करने से शरीर की कई प्रकार की बीमारियों से निजात मिलती है। उन्होने बताया कि जीवन में नियम और संयम का बड़ा महत्व है।
श्री पाण्डेय ने बताया कि यहां जो आत्मिक शुद्धि, शांति ओर आनंद की अनुभूति मिलती है वह गृहस्थी में सुलभ नहीं है। यहां संतो की सेवा कर लोग अपना जीवन संवार लेते हैं। यहां किस रूप में नारायण मिल जाएं कोई नहीं जानता। नि:स्वार्थ सेवा निश्चित पुण्य प्रदान करती है।
दिनेश
वार्ता
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