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आश्रित की नियुक्ति पर नये सिरे से निर्णय लेने का निर्देश

प्रयागराज 20 जनवरी (वार्ता) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ललितपुर में लेखपाल पिता की मौत के समय सात माह की बच्ची को बालिग होने पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति देने से इन्कार करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है।
न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों के तहत नए सिरे से छह हफ्ते में निर्णय लेने का आदेश दिया है तथा कहा है कि राज्य सरकार के निर्णय के बाद उसके चार हफ्ते के भीतर सक्षम अधिकारी नियुक्ति के संबंध में आदेश पारित करें ।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने कुमारी रेनू की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता अशोक कुमार मिश्र ने बहस की।
अधिवक्ता का कहना था कि लेखपाल पिता की 26 मई 1990 को सेवाकाल में मृत्यु हो गई । 15 नवंबर 1989 को याची का जन्म हुआ था। पिता की मृत्यु के समय याची सात माह की थी। जन्म के कुछ दिनों बाद ही उसकी मां की भी मौत हो गई ।
अदालत के आदेश से चाचा की संरक्षकता में पली और जब वह 16 साल की हुई तो उसने 11 अप्रैल 2004 को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त की मांग की । बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी ललितपुर ने नाबालिग मानते हुए नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया। जब 18 साल की हुई तो याची ने फिर अर्जी दी। राज्य सरकार को आवेदन देने मे देरी से छूट देने की सिफारिश की गई। जिसे राज्य सरकार ने निरस्त कर दिया था । इस आदेश को याचिका में चुनौती दी गई थी।
याची के अधिवक्ता अशोक कुमार मिश्र का कहना था कि शिव कुमार दुबे केस में उच्चतम न्यायालय ने आश्रित की आर्थिक स्थिति एवं अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सहानुभूति पूर्वक नियुक्ति पर विचार करने का दिशा निर्देश जारी किया है। राज्य सरकार ने यह कहते हुए नियुक्ति देने से इनकार कर दिया याची को 375 रूपये प्रति माह पारिवारिक पेंशन दी जा रही है। इसलिए इसे छूट नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने कहा कि याची की वित्तीय स्थिति का परीक्षण करते हुए राज्य सरकार नए सिरे से इस संबंध में निर्णय लें।
सं प्रदीप
वार्ता
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