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कौशाम्बी के शीतला धाम कड़ा पर गधों का अद्भुत नजारा

कौशाम्बी, 17 मार्च (वार्ता) 51 शक्तिपीठों में शामिल कौशाम्बी के शीतला धाम कड़ा के गोगरी घाट पर लगने वाले गधा मेले में आज एक अद्भुत नजारा उस समय देखने को मिला जब उन्हें गंगा में स्नान करा कर उनके मालिकों ने उन्हें रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बेचने के लिए ले गए।
कौशाम्बी में गंगा के तट पर स्थित शीतला देवी धाम कड़ा में अनादिकाल से चैत मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी और नवमी दो तिथियों में विशाल गंधर्व मेला लगता है । मां शीतला देवी की सवारी गंधर्व होने के कारण इस मेले का धार्मिक महत्व भी है । मेले में आये जाति विशेष के रजत का विश्वास है कि शीतला धाम कड़ा के इस मेले से गधा खरीद कर ले जाने पर उसके मालिक के लिए विशेष फलदाई होता है।
वैसे तो शीतला धाम कड़ा में आयोजित गंधर्व मेला जाना जाता है जबकि मेले में गधों के अलावा घोड़े एवं खच्चरों की भी बड़ी संख्या में खरीद-फरोख्त की जाती है। इस मेले में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरांचल, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर के व्यापारी गधों और खच्चरों की खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं। दूरस्थ भागों में अधिकांश लोग होली के बाद चैत माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही बगैर किसी साधन के ये लोग अपने पशुओं के साथ कई दिन पैदल चलकर शीतला धाम मेले में पहुंचते हैं।
अब कुछ व्यापारी ट्रक एवं अन्य साधनों से गधे, खच्चर एवं घोड़े बेचने के लिए लाते हैं। यह भव्य मेला इस बार 16 मार्च को शुरु हुआ था और 18 मार्च को इसका समापन होगा। मेले के दूसरे दिन आज बिहार के बक्सर जिला निवासी देहाती रामराज का गधा सबसे अधिक 95000 का उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के व्यापारी नरेश बाबू खरीद कर ले गये। यह गधा इस बार मेले का सबसे खूबसूरत गधा था ।
गधा खरीदने वाले नरेश बाबू ने बताया कि वह गधों से खच्चर तैयार करेगा। इस मेला आगरा जिले में बटेश्वर गर्दभ मेले के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला है।
इस मेले की दूसरी विशेषता है धोबी बिरादरी के लोग मेले में ही अपने जवान बेटी-बेटे की सगाई भी तय करते हैं। उनका मानना है कि यहां तय की गई शादी शुभ होती है और उनके जीवन में आने वाली बाधाएं मां शीतला देवी की आशीर्वाद से नजदीक नहीं आती है । इस धारणा के तहत मेले में कलंदर, भालू पालक और सपेरे भी मेले में आते हैं और वह भी अपने बेटे-बेटी की सगाई करते हैं ।
यह मेला मां शीतला देवी के मंदिर के पीछे लगता है। गर्दभ मेले में आने वाले व्यापारियों का कहना है कि वे लोग मेला शुल्क तो देते है ,लेकिन मेला आयोजकों की ओर से कोई खास व्यवस्था नहीं की जाती। व्यापारियों को रात में पेड़ के नीचे ही अपना आशियाना ही बनाना पड़ता है। सुविधा के नाम पर केवल बिजली की व्यवस्था ही की जाती है। मेला सीमित पानी पीने के लिए मंगाया जाता है ,जिससे व्यापारियों को काफी परेशानी होती है। मेला 18 मार्च को मेला समाप्त हो जाएगा।
सं त्यागी
वार्ता
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