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फीचर लाइब्रेरी संगम तीन अंतिम रामपुर

चित्रों के ऊपर राग एवं रागिनी का नाम लिख दिया गया है कहीं- कहीं तो उसका विस्तृत वर्णन भी किया गया है कि किस समय व किस ऋतु में इस राग या रागिनी का गायन किया जाये। रजा लाइब्रेरी में सुरक्षित एलबम में राग रागिनी का नामांकन उर्दू फारसी में किया गया है। भारतीय संगीत में रागों के संदर्भ में किया गया है कि वह नियमित ध्वनि विशेष ( नियमित स्वरों का समुदाय) जो स्वर तथा वर्ण से मंडित है और जो सर्वसाधारण का मनोरंजन करती है। राग पुरूष व रागिनी स्त्री को प्रदर्शित करते हैं।
रागों के गाने के समय व ऋतुएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। रागों के प्रभाव को संगीत द्वारा उत्पन्न करने पर प्राकृतिक क्रियाओं में भी कुछ समय के लिए परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे यदि मेघ राग गाया जाये तो वर्षा हो जाती है या दीपक राग गाया जाये तो आग या दीपक जल उठते हैं।
चित्रकारों ने प्रेमी तथा प्रेमिका एवं आत्मा व परमात्मा आदि के मिलन को प्रतीक मानकर उचित रंग रूप और प्रकृति का चित्रण किया है। इसी प्रकार राग-रागिनी के रूप का उसी रूप में चित्रण किया गया है जिस रूप में संगीतकार अपने संगीत साधना के समय उस राग या रागिनी को अपने मानक पटल पर देखकर राग-रागिनी का गायन करता है। चित्रकारों ने संगीतकारों के मस्तिष्क में छुपे हुए उस चित्र को समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने में अपनी भूमिका प्रस्तुत की है।
सं प्रदीप
वार्ता
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