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उत्तर प्रदेश सूत रोजगार दो अन्तिम कुशीनगर

संस्थान के प्रबंधक जयप्रकाश पांडेय ने बताया कि यह संस्थान रायबरेली व एटा के केंद्रीय पूसी संयंत्र से कच्चा माल मंगाता है। यहां क्षेत्र के करमा टोला, सपहा, अवरवा सोफीगंज, धौरहरा आदि गांव की महिलाओं को रोजगार मिला है। एक चरखा पर आठ किलोग्राम कच्चे माल के बंडल से महिलाएं 25 से 30 दिन में करीब 35 किलो सूत तैयार करती हैं। इसके लिए उन्हें प्रत्येक दिन सात से आठ घंटा कार्य करना होता है। प्रत्येक माह की पहली तारीख को कार्य करने वाली इन महिलाओं के बैंक खाते में सात से दस हजार रुपये तक का मैसेज पहुंच जाता है। इन हुनरमंद महिलाओं की कमाई रकम के तीस प्रतिशत हिस्से के बराबर रकम प्रोत्साहन स्वरूप केन्द्र सरकार इनके बैंक खातों में भेजती है। इतना ही नहीं केन्द्र सरकार और संस्थान इनका वार्षिक बीमा का प्रीमियम भी अदा करता है।
चरखे को परिवार की खुशहाली का केंद्र मानने वाली बसंती, रैबुन, हजरूति तथा शोभा का कहना है कि रोजगार संकट के इस दौर में अपने गांव में ही रोजगार मिलने से परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है। घर का काम निपटाकर वे लोग इस कार्य को भी पूरा कर लेती हैं। आयशा और सावित्री ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान भी उनके घरों में केवल इस चरखा की वजह से ही आर्थिक तंगी नहीं आई है।
संस्थान के प्रबंधक जयप्रकाश पांडेय का कहना है कि सूत कातकर एक महिला औसतन आठ हजार रुपये कमा लेती हैं। संस्थान इनके दो बच्चों की कक्षा नौ से बारहवीं तक की फीस भी भरता है। सरकार से प्रोत्साहन व बीमा की भी व्यवस्था है। इनके बनाये सूत हरदोई, मुरादाबाद व बिजनौर भेजा जाता है। जल्द ही स्थानीय स्तर पर बुनाई का कार्य भी प्रारम्भ होगा।
सं भंडारी
वार्ता
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