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उत्तर प्रदेश-बुंदेलखंड पलायन दो अंतिम झांसी

सर्वोदयी कार्यकर्ता ने बताया कि बांदा की सरकारी कताई मिल जिसमें दो हजार से अधिक लोग काम करते थे,वह मिल के बंद होने से रास्ते पर आ गये। अर्तरा की राइस मिलें जिसमें 50 हजार से अधिक मजूद और छोटे किसानों को काम मिलता था,बंद हो गयीं, चित्रकूट का कत्था और लकड़ी उद्योग बंद हो गया। आधुनिक विकास की दौड़ में जंगल खत्म हुए तो तेंदूपत्ता खत्म हुआ, महोबा का पान उद्योग और यहीं के जैतपुर का खादी उद्योग जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शुरू किया था और जिसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलता था वह भी खत्म हुआ। कभी बुंदेलखंड की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले उरई का दवा, साबुन, कपडा और खाद्यान्न उद्योग बरबाद हुआ । कालपी का कागज उद्योग बंद हुआ ,जालौन की गन्ना मिलों पर ताला पड़ा और देश को सबसे अधिक सूती कपड़ा देने वाली झांसी की मऊरानीपुर तहसील जहां लगभग 25 हजार लोग हथकरघा चलाकर प्रतिदिन तीन लाख मीटर कपड़ा बनाते थे और लगभग एक लाख परिवार रोजगार पाते थे वहां आज वीरानी छायी है।
झांसी की कताई मिले बंद हो गयी, ललितपुर का पुरातन पत्थर उद्योग चौपट हो गया, बांदा और महोबा की चलती हुई दूध की डेरियां बंद कर दी गयीं, बांदा का स्पेलर उद्योग बंद हो गया । पिछले 20 वर्षों में बुंदेलखंड के किसी भी जिले में 100 लोगों को रोजगार देने के लिए कोई सरकारी धंधा नहीं स्थापित हुआ है। बुंदेलखंड की 30 लाख जनसंख्या खेती पर निर्भर है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लगभग 11 लाख से अधिक मनरेगा मजदूर है लेकिन यह योजना भी इस क्षेत्र से पलायन को नहीं रोक पायी। कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाले हथकरघा क्षेत्र की हालत बुंदेलखंड में दयनीय है । प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न इस इलाके मे अवैध खनन की जो बयार लंबे समय से बह रही है उससे अधिकारी वर्ग से लेकर राजनेता सभी राजा बन गये लेकिन आम बुंदेली के हाथ आयी बदहाली।
बुंदेलखंड में चुने गये जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और नासमझी के कारण उद्योग चौपट हुए इसी समय प्राकृतिक आपदा ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया। पिछले बीस वर्षों से यह क्षेत्र लगातार सूखे की मार झेल रहा है ऐसे में खेती भी चौपट हो गयी। किसान और बुनकर दोनों के ही बदहाल होने से लोगों के पास परिवार के पालन पोषण के लिए पलायन के अलावा और कोई मार्ग नहीं रह गया। सरकार की उदासीनता के कारण न तो यहां के किसान को और न ही बुनकर को किसी तरह की सहायता मिल पायी । इसी का नतीजा है कि बुंदेलखंड में आज गांव के गांव खाली हो रहे हैं वहां केवल बुजुर्ग और बच्चे की देखने को मिलते हैं।
सोनिया
वार्ता
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