झांसी 25 जून (वार्ता) देश में लोकतंत्र को कुचलने के लिए लगाये गये आपातकाल के दौरान हुई बर्बरता उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी में भी लोगों ने झेली । इस दौरान छात्रों को परीक्षा से वंचित कर दिया गया और जेल में बंद छात्र तथा छात्र नेताओं से वहीं परीक्षाएं भी ली गयीं।
निरंकुश शासन और लोकतंत्र की हत्या करने वाले आपातकाल के दौरान बड़े पैमाने पर हुए अत्याचारों की याद करते हुए लोकतंत्र सेनानी व वरिष्ठ पत्रकार रामसेवक अड़जरिया ने गुरूवार को बताया कि वह भी उन छात्र नेताओं में से एक थे, जिन्होंने जेल से परीक्षा दी थी। वह उस समय जिले के श्रेष्ठ विद्यालय गुरसरांय के त्यागमूर्ति आत्माराम गोविंद खैर इण्टर काॅलेज में इण्टरमीडिएट के छात्र थे। उन्होंने भी युवा जोश में आपातकाल का जमकर विरोध किया और इस पर उन्हें 13 दिसम्बर 1975 को वीरांगना भूमि के सदर बाजार क्षेत्र से जेल भेज दिया गया था। उन्हें आगामी 1976 के मार्च-अप्रैल में इण्टरमीडिएट की परीक्षा देनी थी। इसके लिए उनकी ओर से उनकी पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीश सहाय शर्मा ने उन्हें परीक्षा देने के लिए पैरोल पर जमानत देने की बात रखी थी।
परीक्षा के लिए पेरोल पर जमानत के सवाल पर तत्कालीन प्रशासन ने आपातकाल का हवाला देते हुए छात्र और छात्र नेताओं को जेल से बाहर निकालने में असहमति जताते हुए जेल को ही परीक्षा केन्द्र बनाने का प्रस्ताव रखा था। और फिर विद्या के मंदिर को दरकिनार करते हुए जिला कारागार को ही परीक्षा केन्द्र बनाकर श्री अड़जरिया समेत करीब 40 छात्रों को हाईस्कूल,इण्टरमीडिएट,स्नातक,परास्नातक व विधि आदि कक्षाओं की परीक्षाएं दिलाई गई थी। इन छात्रों में पूर्व शिक्षा मंत्री डा.रवीन्द्र शुक्ला, राजेन्द्र कुशवाहा, वीरेन्द्र साहू, ओमप्रकाश शर्मा आदि करीब तीन दर्जन छात्र शामिल रहे थे।
साेनिया
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