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तुलसी दास की गुरू नरहरिदास से भेट उनके लिये सिद्ध हुई ईश्वरीय बरदान

चित्रकूट 25 जुलाई (वार्ता) माना जाता है कि जिसका कोई नहीं होता, उसका ईश्वर होता है। राम चरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसी दास की स्वामी नरहरिदास से भेट उनके लिए ईश्वरीय वरदान सिद्ध हो गई।
महान ग्रंथ रामचतिमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है। श्रावण मास की अमावस्या के सातवें दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 27 जुलाई को है।
रामचरित मानस की रचना कर भगवान् राम के पावन चरित्र को विश्व व्यापी बनाने वाले संत गोस्वामी तुलसी दास की जन्म चित्रकूट के राजापुर में आत्मा राम दुबे नाम के एक गरीब ब्राह्मण के परिवार में संवत पंद्रह सौ चौवन में हुआ था । तुलसीदास जन्म से ही विलक्षण थे किवदंती है कि रोने की बजाय इनके मुंह से राम राम निकला था और जन्म के समय से ही इनके मुह में पूरे बत्तीस दाँत मौजूद थे।
जन्म के कुछ ही दिनों बाद इनकी माँ हुलसी देवी का देहांत हो जाने के कारण तुलसी को मनहूस समझ कर इनके पिता ने घर से निकाल दिया। चुनिया नाम की महिला तुलसी का पालन पोषण करने लगी। उसी समय राजापुर आये चित्रकूट के संत नरहरिदास तुलसी को अपने आश्रम चित्रकूट ले आये और दीक्षा दे अपना शिष्य बना लिया।
गुरु नरहरिदास ने शास्त्रों के गहन अध्ययन के लिए तुलसी को काशी भेज दिया। तुलसी की शादी उनकी जन्मस्थली राजापुर के पास ही महेवा ग्राम में दीनबंधु पाठक की सुपुत्री रत्नावली से हो गयी। एक बार जब रत्नावली अपने मायके में थी तब तुलसी उनके वियोग में इस कदर पागल हुए की रात के समय भयंकर बाढ़ में बह रही यमुना में बहे जा रहे एक शव को पेड़ का तना समझकर उसी के सहारे अपनी ससुराल पहुंच गए। आधी रात में ससुराल पहुंचे तुलसी के बार बार पुकारने पर भी जब किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वे खिड़की से लटक रहे सांप को रस्सी समझ कर ऊपर चढ़ कर कमरे में सोई हुई रत्नावली के पास पहुंच गए। अपने ऊपर तुलसी की ऐसी आसक्ति देखकर रत्ना इतनी व्यथित हुई की उन्होंने तुलसी को झिड़कते हुए डांट लगाई -
"अस्थि चर्म मय देह मम तामे ऐसी प्रीत; ऐसी जो श्री राम मह होत न तव भव भीति।।
पत्नी रत्ना के इन शब्दों ने जैसे मोह निद्रा में सोए हुए तुलसी को जगा दिया उस दिन से तुलसी का सिर्फ एक ही मकसद रह गया इस दुनिया के रिश्ते नातों को छोड़ भगवान् राम के साथ एकाकार होना। अब तुलसी नारी शरीर की आसक्ति से मुक्त हो परमात्मा से अपने दिल के तार जोड़ने लगे।
सं भंडारी
जारी वार्ता
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