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उत्तर प्रदेश-राजाराम ओरछाधाम दो अंतिम झांसी

मान्यता है कि दिन के समय त्रिभुवनपति ओरछा में निवास करते हैं तो रात में विश्रााम के लिए अयोध्या धाम चले जाते हैं इसीलिए ओरछाधाम को दूसरी अयोध्या या बुन्देलखंड अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन कम लोगों को ही यह जानकारी है कि भगवान राम की दूसरी अयोध्या ओरछाधाम में योगेश्वर कृष्ण अपने परम भक्त राजा मधुकर शाह पर कृपा बरसाते हुए अक्सर रासलीला करने चले आते थे। पत्थरों को चीरकर कलकल करती बेतवा नदी यहां के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है। यहां के महल स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। भक्ति और कला का संगम समेटे ओरछाधाम में विश्व के विभिन्न देशों के पर्यटक यहां की प्रकृति के आगे समर्पण कर देते हैं। लाॅकडाउन के कारण राजा राम का मंदिर अभी बंद है। मार्च तक यहां भारी संख्या में पर्यटक आते थे। भगवान राम की नगरी ओरछा विश्वविख्यात है।
बताया जाता है कि सोलहवीं सदी में यहां के शासक मधुकरशाह थे वह अपनी पत्नी कुंवरिगनेश से अत्यधिक प्रेम करते थे, उस सदी में यहां भगवान जुगलकिशोर का प्राचीन मंदिर था ,जहां जन्म अष्टमी मनायी जा रही थी। शाह को लगा रासलीला में वृंदावन बिहारीलाल साक्षात उन्हें दर्शन देकर गए हैं। मधुकरशाह श्रीविग्रह में व्याकुल हो गए और उन्होंने वृंदावन जाने का फैसला कर लिया। अपनी पत्नी से सारी बात बताकर उन्हें भी चलने के लिए कहा मगर वह प्रभु श्रीराम की उपासक थीं। उन्हाेंंने अयोध्याधाम जाने की इच्छा जाहिर की। इस पर क्रोधित राजा ने कहा कि मेरे बिहारी जू मेरे साथ आकर रास करते हैं। अपने राम को ओरछा लाकर बताओ तब आपकी दृढ़ भक्ति साधना मानी जाएगी। रानी प्रभु राम की अनंय भक्त थीं और वह अधोध्या जा पहुंची। वहां सरयू किनारे कठोर तप करने लगीं लेकिन कई दिन बीतने पर भी भगवान नहीं आए। इस पर महारानी क्षुब्ध हो गईं और नदी में कूद गयीं। नदी की गहराई में श्रीराम जी ने पहुंचकर उन्हें बचाया और वर मांगने को कहा। रानी ने उन्हें ओरछा चलने का आमंत्रण दे दिया। भगवान कुछ शर्तों के साथ मान गए। पहली शर्त उनकी यही थी कि वह यहां राजा होंगें,दूसरी वह जहां विराजमान हो जाएंगे वहां से नहीं हटेंगे और तीसरी यह कि वह पुष्य नक्षत्र में ही चलेंगे। इन शर्तों के साथ महारानी भगवान को साथ लेकर अयोध्या चल दीं।
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश तिवारी ने बताया कि ओरछा में रानी ने रात के समय आयीं और भूलवश उन्होंने महल के रसोईघर में ही प्रभु राम की प्रतिमा को रख दिया। रानी ने मधुकरशाह को प्रभु राम से साक्षात्कार की बात बतायी। राजा ने उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया था लेकिन शर्त के अनुसार उन्हें जहां रखा जाता वह उन्हें वहीं स्थापित होना था इसलिए लाख जतन के बाद भी भगवान राम महल से जाने के लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद राजा ने अपने लिए दूसरे महल का निर्माण कराया था जबकि चतुर्भुज मंदिर में अब भगवान कृष्ण विराजमान हैं। ओरछा नगरी में श्रीराम विवाह में यहां हजारों लाखों श्रृद्धालुओं की भीड़ जुुटती है और पूरे शाही अन्दाज में राजाराम का विवाह कार्यक्रम समन्न होता है। कुछ ही महीने हुए यहां नमस्ते ओरछा का सरकारी आयोजन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय मेहमान भी आए। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना था। दुर्भाग्य कि उनके प्रोटोकाॅल में राजाराम के दरबार का कार्यक्रम तक नहीं था। इसके बाद सरकार अस्थिर होने के कारण वह यहां नहीं आ सके थे।
भगवान श्रीरामराजा सरकार के अनन्य भक्त पुष्पेन्द्र सिंह बताते हैं कि स्वामी राजेन्द्रदास जी महाराज ने कृष्ण द्वारा ओरछाधाम में रासलीला करने का कई बार जिक्र किया है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि महाराजा मधुकर शाह को पन्ना में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए थे जिसके बाद उन्होंने वहां जुगलकिशोल जी का मंदिर बनवाया था।
ऐसी मान्यता है कि ओरछाधाम में बिराजे रामराजा सरकार के दो निवास हैं, दिन में वह ओरछा में निवास करते हैं और रात होते ही ब्यारु करने के बाद हनुमान जी उन्हें लेकर अयोध्या चले जाते हैं। रामराजा सरकार के मंदिर के सामने दरवाजे के बाहर स्थित पाताली हनुमान जी को उनकी ब्यारु और आरती के बाद मंदिर से पुजारी आरती व ब्यारु कराने भी जाते हैं। उसके बाद प्रभु श्रीराम का अयोध्या के लिए प्रस्थान हो जाता है। और सुबह से फिर वही लीला शुरु होती है।
सोनिया
वार्ता
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