राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Nov 1 2020 3:20PM लोकरूचि ब्रज कार्तिक दो अंतिम मथुराभागवताचार्य के अनुसार असुर शंखरासुर ने जब यह देखा कि यद्यपि वह देवताओं को पराजित कर चुका है फिर भी देवता शक्तिशाली बने हुए हैं तो उसने इसका कारण खोजा और पाया कि वेदमंत्रों के कारण उनकी शक्ति क्षीण नही हुई है। इसके बाद वह ब्रह्मलोक से वेदों को चुरा लाया और उन्हे समुद्र में फेंक दिया।इसके बाद ब्र्रम्हा के नेतृत्व में वे विष्णु भगवान के पास गए और उनकी योग निद्रा समाप्त करने के लिए वेदमंत्रों का पाठ किया। योग निद्रा से उठने के बाद ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेदों को समुद्र से निकाल लिया था।उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते है कि कार्तिक मास में जो दीपदान, परिक्रमा आदि करता है वह उनके लोक में आता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे किसी तीर्थ जाने की आवश्यकता नही है। उन्होंने बताया कि चाहे मथुरा की परिक्रमा हो या वृन्दावन की, गोकुल की हो या गोवर्धन की हो अथवा बरसाना की , सभी का महत्व इसलिए है कि इस भूमि पर श्रीकृष्ण ने विभिन्न प्रकार की लीलाएं की थीं। यदि उनके चरण की रज का एक कण भी मस्तक से छू जाय तो जीवन धन्य हो जाएगा। इसीलिए इस माह में वृज के विभिन्न तीर्थों की परिक्रमा की जाती है। भक्त परिक्रमा शुरू करते या समाप्त करने समय दण्डवत इसी आशा से करता है कि ठाकुर के चरण कमल की रज उसके मस्तक से लग जाय और इसीलिए ब्रज रज को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए कहा गया है कि ’’ मुक्ति कहे गोपाल ते मेरी मुक्ति बताय।ब्रज रज उड़ि मस्तक लगे मुक्ति मुक्त होइ जाय।’’ गोवर्धन की नित्य एक परिक्रमा करनेवाले कृष्णदास बाबा ने बताया कि परिक्रमा के इसी महत्व के कारण विदेशी कृष्ण भक्त तो इस माह में ब्रजमंडल यानी चैरासी कोस की परिक्रमा करते हैं।उन्होंने बताया कि गोवर्धन में कई संत ऐसे हैं जो रोज दो तीन परिक्रमा करते हैं तथा कुछ संत तो चार परिक्रमा तक करते है।उन्होंने बताया कि बहुत से भक्त तो ब्रज के किसी तीर्थ में कल्पवास तक कर रहे है। कुल मिलाकर कार्तिक मास की शुरूवात से ही ब्रज के कण कण में कृष्ण भक्ति की गगा प्रवाहित हो रही है।सं प्रदीपवार्ता