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राज्य » उत्तर प्रदेश


राष्ट्रीय वोरा ब्रज दो अंतिम मथुरा

श्री वोरा जब भी मथुरा आते यहां के लोगों से मिलकर यहां के विकास की चर्चा करते और उसे पूरा करने का आदेश अधिकारियों को देते। अपने राज्यपाल के कार्यकाल के अंतिम समय में लोगों ने जब उनसे गोवर्धन का विकास कराने को कहा तो उन्होंने गोवर्धन की स्थिति देखने का निश्चय किया लेकिन उस समय का प्रशासन उनका ऐसा प्रोग्राम बनाता कि अन्य कार्यक्रमों में व्यस्त होने के कारण वे गोवर्धन नही पहुंच पाते थे और हेलीकोप्टर के उ़ड़ने का समय हो जाता।
राज्यपाल के पद से त्यागपत्र देने के बाद जब वे गोवर्धन आए तो उन्होंने उस समय कहा था कि उन्हें वहां पहले ही आना चाहिए था तथा गोवर्धन की व्यवस्थाएं तो वैष्णोदेवी जैसी होनी चाहिए।
मोतीलाल वोरा चूंकि स्वयं पत्रकार थे इसलिए वे पत्रकारों की समस्या और उनके उत्तरदायित्व को समझते थे। उन्होने प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ छपने वाले समाचार को कभी अन्यथा नही लिया बल्कि उसके पीछे की कमी को जानकर उसे दूर कराने का प्रयास किया । उन्होंने मथुरा में पत्रकारों के लिए कालेानी बनाने का भी आदेश तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत को दिया था यह बात दीगर है कि उस समय के जिलाधिकारी ने इसमें कोई रूचि नही दिखाई और मथुरा में पत्रकार कालोनी नही बन सकी।
वे गोभक्त थे तथा राजभवन की उनकी दिनचर्या गायों को रोटी खिलाने से शुरू होती थी। उनका कहना था कि गाय को प्लास्टिक खाने से रोका जाना चाहिए और यह काम गोशाला में ही हो सकता है पर चूंकि राज्यपाल के रूप में वे सभी कार्यों को देख नही सकते थे और अधिकारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता था इसलिए बहुत सी जनक्लयाणकारी योजनाएं उस समय नही शुरू हो पाईं। वे चाहते थे कि प्रदेश के विद्यार्थी मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में न जाये और यहीं पर अधिक से अधिक इंजीनियरिंग कालेज या मेडिकल कालेज खुलें। यही कारण है कि जब अखिलेश दास ने लखनऊ में बनारसीदास इंजीनियरिंग कालेज खोलने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने शासन की ओर से इसमें भरपूर मदद की।
वे यद्यपि मूल रूप से कांग्रेसी थे लेकिन राज्यपाल का दायित्व निभाते समय उन्होंने सभी के साथ समान व्यवहार किया और यदि कहीं कांग्रेसियों की गलती थी तो उसे उसी रूप में लिया। उनके कार्यकाल में राज्यपाल के दरवाजे जनता के लिए हर दिन न केवल खुले रहते थे बल्कि उन्होंने राजभवन में आनेवाले हर व्यक्ति की मदद करने की कोशिश की । वे न केवल यह कहा करते थे कि ‘मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे’ बल्कि मनसा ,वाचा, कर्मणा से उन्होंने जीवनपर्यन्त इसका पालन किया।
सं प्रदीप
वार्ता
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