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न्यायिक अफसर के ज्ञान व योग्यता पर जिला जज न करें प्रतिकूल टिप्पणी:उच्च न्यायालय

लखनऊ,12 जनवरी (वार्ता) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश को अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर निर्णय देते हुए अपने अधीनस्थ (निचले) न्यायिक अफसर पर प्रतिकूल टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
यह कहते हुए न्यायालय ने जिला जज हरदोई द्वारा एक फैसले के दौरान हरदोई की ही अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) अलका पांडे के विरुद्ध न्यायिक निर्णय में की गई टिप्पणी को हटा दिया है।
न्यायामूर्ति आलोक माथुर की पीठ ने एसीजेएम अलका पांडे की याचिका पर यह आदेश पारित किया। न्यायालय ने कहा कि यदि जिला जज को अपने अधीनस्थ किसी न्यायिक अफसर के फैसले लिखने को लेकर कमी नजर आती तो वह इसकी शिकायत मुख्य न्यायमूर्ति या प्रशासनिक जज से कर सकते हैं। याची का कहना था कि बतौर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसने आइपीसी की धारा 406 व 411 के एक मामले की सुनवाई के बाद अभियुक्त को दोषी करार देते हुए दो वर्ष के कारावास व पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। अभियुक्त ने सजा के आदेश के विरुद्ध जिला एवं सत्र न्यायाधीश हरदोई के समक्ष अपील दायर की।
अपील पर निर्णय देते हुए सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया, साथ में याची पर टिप्पणी भी की कि विद्वान मजिस्ट्रेट ने बिना साक्ष्य विश्लेषण किये अपीलार्थी के विरुद्ध आरोपसिद्ध होने का जो निष्कर्ष निकाला है वह त्रुटिपूर्ण है। सत्र न्यायाधीश ने कहा था कि विद्वान मजिस्ट्रेट से निर्णय लेखन में सुधार अपेक्षित है।
याची ने सत्र न्यायाधीश के उक्त टिप्पणी को फैसले से हटाने की मांग की। न्यायालय ने सुनवाई के बाद पारित आदेश में कहा कि सत्र न्यायालय को अपील की सुनवाई करते हुए इस बात का पूरा अधिकार है कि वह साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करे व ट्रायल अदालत के निष्कर्ष से असहमति जताए व ट्रायल न्यायालय के निर्णय के विपरीत निर्णय पारित करे, लेकिन उसे यह अधिकार कदापि नहीं है कि वह ट्रायल अदालत के जज की कानूनी क्षमता पर टिप्पणी करे।
न्यायालय ने आगे कहा कि उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय को भी निर्देश दिया है कि उन्हें अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर आदेश पारित करते समय, निचली अदालतों के जजों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उधर, मामले में उच्च न्यायालय प्रशासन की तरफ से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा पेश हुए। अदालत ने उक्त आदेश देते हुए याचिका मंजूर कर ली।
सं त्यागी
वार्ता
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